उपश्रेणियाँ

हदीस सूची

1. "जो बातें मैं तुम्हें बताना छोड़ दूँ, उनके बारे में तुम मुझे मेरे हाल पर रहने दो, क्योंकि तुमसे पहले के लोगों को केवल इसी बात ने विनष्ट किया कि वे अत्यधिक प्रश्न करते और अपने नबियों से मतभेद करते थे।* अतः, जब मैं किसी चीज़ से मना करूँ तो उससे बचते रहो और जब किसी चीज़ का आदेश दूँ तो जहाँ तक हो सके, उसका पालन करो।"
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2. "जिसे नर्मी से वंचित कर दिया गया, उसे सारी भलाई से वंचित कर दिया गया।"
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3. “सच्चाई को मज़बूती से थाम लो, क्योंकि सच्चाई नेकी (सुकर्म) की राह दिखाती है और नेकी जन्नत की ओर ले जाती है।* आदमी सर्वदा सत्य बोलता है तथा सत्य की खोज में लगा रहता है, यहाँ तक कि अल्लाह के निकट सत्यवादी लिख लिया जाता है। तुम झूठ बोलने से बचो, क्योंकि झूठ बुराई की ओर ले जाता है और बुराई जहन्नम की ओर ले जाती है। आदमी सदा झूठ बोलता रहता है तथा झूठ ही की खोज में लगा रहता है, यहाँ तक कि अल्लाह के यहाँ झूठा लिख लिया जाता है।” - 2 ملاحظة
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4. : :
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5. नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- प्रत्येक रमज़ान में दस दिन एतेकाफ़ करते थे। परन्तु जब मृत्यु का वर्ष आया, तो बीस दिन एतेकाफ़ किया।
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6. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से उस व्यक्ति के बारे में पूछा गया, जो बहादुरी दिखाने के लिए लड़ता हो, तथा उस व्यक्ति के बारे में पूछा गया जो अपनी क़ौम या देश के बचाव के लिए लड़ता हो एवं उस व्यक्ति के बारे में पूछा गया जो दिखावे के लिए लड़ता हो, इनमें से किसकी लड़ाई अल्लाह की राह में है? अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उत्तर दिया : @"जिसने युद्ध अल्लाह के शब्द को ऊँचा करने के लिए किया, उसका युद्ध अल्लाह की राह में है।"
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7. "न रेशम पहनो और न दीबाज (मोटे रेशमी वस्त्र)। न सोने-चाँदी के बरतन में पियो और न उनकी थाली में खाओ। क्योंकि यह वस्तुएँ दुनिया में उन (काफ़िरों) के लिए हैं और आख़िरत में हमारे लिए।"
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8. जिसने किसी बात पर जान-बूझकर इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म की झूठी क़सम खाई, तो वह वैसा ही होगा, जैसा उसने कहा - 2 ملاحظة
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9. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने साथियों की एक सभा में गए और फरमाया : "तुम लोग क्यों बैठे हुए हो?" उन लोगों ने कहा : हम लोग इसलिए बैठे हैं, ताकि अल्लाह को याद करें और इस बात पर उसकी प्रशंसा करें कि उसने हमें इस्लाम का रास्ता दिखाया और इस्लाम जैसा धर्म प्रदान किया। आपने कहा : "अल्लाह की क़सम तुम लोग इसी के लिए बैठे हो?" उन लोगों ने कहा : अल्लाह की क़सम हम इसी लिए बैठे हैं। आपने फरमाया: @"मैं तुमसे क़सम इसलिए नहीं ले रहा हूँ कि तुमपर कोई आरोप लगाना चाहता हूँ। दरअसल बात यह है कि जिबरील अलैहिस्सलाम मेरे पास आए और बताया कि सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह फ़रिश्तों के निकट तुम लोगों पर गर्व कर रहा है।"
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10. "अपनी सफ़ें सीधी कर लिया करो; क्योंकि सफ़ों को सीधा करने का संबंध नमाज़ की पूर्णता से है।" - 2 ملاحظة
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11. हया केवल भलाई ही लाती है।
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12. "कोई मोमिन पुरुष किसी मोमिन स्त्री से नफ़रत न करे। यदि वह उसके किसी काम को नापसंद करता है, तो उसके किसी दूसरे (अथवा अन्य) काम को पसंद करेगा।"*
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13. ''जब तुम शौच के लिए जाओ, तो पेशाब तथा पाखाना करते समय न क़िबला की ओर मुँह करो, न उसकी ओर पीठ ही करो; बल्कि पूरब अथवा पश्चिम की ओर मुँह कर लो।''* अबू अय्यूब कहते हैं : जब हम शाम गए, तो देखा कि वहाँ शौचालय काबा की दिशा में बने हुए हैं। सो हम वहाँ तिरछे होकर बैठते और अल्लाह से क्षमा याचना करते।
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14. "तुममें से कोई व्यक्ति पेशाब करते समय अपने लिंग को दाएँ हाथ से न पकड़े तथा दाएँ हाथ से इस्तिंजा (पेशाब-पाखाना से पवित्रता प्राप्त) न करे एवं कुछ पीते समय बरतन में साँस न ले।"
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15. अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब नमाज़ शुरू करते और जब रुकू के लिए "अल्लाहु अकबर" कहते, तो अपने दोनों हाथों को अपने दोनों कंधो के बरारब उठाते।* रूकू से सिर उठाते समय भी इसी तरह दोनों हाथों को उठाते और कहते : "سَمِعَ الله لمن حَمِدَهُ رَبَّنَا ولك الحمد" (अल्लाह ने उसकी सुन ली, जिसने उसकी प्रशंसा की। ऐ हमारे रब, तेरी ही प्रशंसा है।) लेकिन सजदे में दोनों हाथों को उठाते नहीं थे।
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16. :
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17. "क्या मैं तुम्हें दज्जाल के बारे में वह बात न बताऊँ, जो किसी नबी ने अपनी जाति को नहीं बताई? वह काना होगा और वह अपने साथ जन्नत और जहन्नम से मिलती-जुलती चीज़ें लाएगा* और जिसे जन्नत कहेगा, वास्तव में वह जहन्नम होगी। मैं तुम्हें उससे उसी तरह सावधान करता हूँ, जिस तरह नूह अलैहिस्सलाम ने अपनी जाति को सावधान किया था।"
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18. सज्दे में संतुलित रहो और तुम में से कोई अपने बाज़ुओं को कुत्ते की तरह न बिछाए।
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19. "अच्छे और बुरे साथी की मिसाल ऐसी है, जैसे कस्तूरी वाला और आग की भट्टी धौंकने वाला।* कस्तूरी वाला या तो तुझे भेंट में खुशबू देगा, या तू उससे खरीद लेगा या तू उसकी सुगंध पाएगा। जबकि आग की भट्टी धौंकने वाला या तो तेरे कपड़े जला देगा या तू उसकी दुर्गंध पाएगा।" - 2 ملاحظة
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20. "अच्छे कार्यों की ओर जल्दी करो, उन फ़ितनों से पहले, जो अंधेरी रात के विभिन्न टुकड़ों की तरह सामने आएँगे।* आदमी सुबह को मोमिन होगा, तो शाम को काफ़िर अथवा शाम को मोमिन होगा, तो सुबह को काफ़िर, दुनिया की किसी वस्तु के बदले में अपने धर्म का सौदा कर लेगा।" - 4 ملاحظة
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21. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब नमाज़ पढ़ते, तो (सजदे की अवस्था में) अपने दोनों बाज़ुओं को इतना हटाकर रखते कि आपकी बगलों का उजलापन प्रकट हो जाता।
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22. "सबसे उत्तम दीनार जिसे इंसान ख़र्च करता है, वह दीनार है जिसे वह अपने परिवार पर ख़र्च करता है, फिर वह दीनार है जो वह अल्लाह की राह में जिहाद करने के लिए खास किए हुए जानवर पर ख़र्च करता है, और फिर वह दीनार है जिसे वह अल्लाह के रास्ते में अपने साथियों पर ख़र्च करता है।"* अबू क़िलाबा कहते हैं कि शुरूआत परिवार से की। फिर अबू क़िलाबा ने कहा कि भला कौन व्यक्ति, उस आदमी से पुण्य में बढ़ सकता है, जो अपने छोटे-छोटे बच्चों पर खर्च करता है, ताकि वे दूसरों के सामने हाथ फैलाने पर मजबूर न हों या अल्लाह तआला उन्हें उसके द्वारा लाभ पहुँचाए तथा उनको निस्पृह कर दे।
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23. "मोमिन का मामला भी बड़ा अजीब है। उसके हर काम में उसके लिए भलाई है। जबकि यह बात मोमिन के सिवा किसी और के साथ नहीं है।* यदि उसे ख़ुशहाली प्राप्त होती है और वह शुक्र करता है, तो यह भी उसके लिए बेहतर है और अगर उसे तकलीफ़ पहुँचती है और सब्र करता है. तो यह भी उसके लिए बेहतर है।" - 2 ملاحظة
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24. जनाबत (स्वप्नदोष, सह्वास या किसी भी कारणवश वीर्यस्खलन हो जाने से होने वाली अपवित्रता से पवित्र होने) का स्नान करने का तरीक़ा
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25. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब छींकते, तो अपना हाथ या कपड़ा अपने मुँह पर रख लेते और अपनी आवाज़ धीमी (या नीची) रखते।
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26. "तुम अपने से पहले समुदायों का बित्ता-बित्ता और हाथ-हाथ अनुसरण करोगे।* यहाँ तक कि अगर वे सांडा के बिल में घुसे हैं, तो तुम भी उसमें घुसोगे।" सहाबा ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, क्या आपका आशय यहूदी और ईसाई हैं? तो आपने फरमाया : "फिर और कौन?"
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27. तुम अपना सर उठाओ और कहो; तुम्हारी बात सुनी जाएगी, माँगो; तुम्हें दिया जाएगा तथा सिफ़ारिश करो; तुम्हारी सिफ़ारिश ग्रहण की जाएगी।
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28. "कोई संक्रामकता नहीं, अपशगुनता नहीं, उल्लू का कोई कुप्रभाव नहीं और सफ़र मास में कोई दोष नहीं। कोढ़ के रोगी से वैसे ही भागो, जैसे शेर से भागते हो।"
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29. "कल मैं झंडा एक ऐसे आदमी को दूँगा, जिसके हाथ पर अल्लाह विजय प्रदान करेगा। उसे अल्लाह तथा उसके रसूल से प्रेम है तथा अल्लाह एवं उसके रसूल को भी उससे प्रेम है।" सहाबा रात भर यह अनुमान लगाते रहे कि झंड़ा किसे दिया जा सकता है? सुबह सब लोग नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास पहुँचे। हर व्यक्ति आशान्वित था कि झंडा उसे ही दिया जाएगा। लेकिन आपके मुँह से निकला : "अली बिन अबू तालिब कहाँ हैं?" कहा गया कि ऐ अल्लाह के रसूल! उनकी आँखें दुख रही हैं। आपने कहा : "उसे बुला भेजो।" उन्हें उपस्थित किया गया, तो आपने उनकी आँखों में अपना मुखस्राव डाल दिया और दुआ कर दी। नतीजे में वह ऐसे ठीक हो गए, जैसे उन्हें कोई परेशानी थी ही नहीं। आपने उन्हें झंडा थमा दिया। ऐसे में अली रज़ियल्लाहु अनहु ने कहा : क्या मैं उनसे उस समय तक लड़ूँ, जब तक वे हम जैसे न हो जाएँ? आपने कहा : "आराम से चल पड़ो। जब ख़ैबर के मैदान में पहुँच जाओ, तो उन्हें इस्लाम ग्रहण करने का आमंत्रण देना और उनपर अल्लाह के जो अधिकार हैं, उन्हें उनसे अवगत करना। @अल्लाह की क़सम, अल्लाह तुम्हारे द्वारा यदि एक भी व्यक्ति को हिदायत दे दे, तो यह तुम्हारे लिए लाल ऊँटों से उत्तम है।" - 4 ملاحظة
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30. "जब लोग किसी को अत्याचार करते हुए देखें और उसका हाथ न पकड़ें, तो संभव है कि अल्लाह उन तमाम लोगों पर अपना अज़ाब उतार दे।"
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31. उसकी क़सम, जिसके हाथ में मेरे प्राण हैं, तुम अवश्य ही भलाई का आदेश देते रहोगे तथा बुराई से रोकते रहोगे, वरना अल्लाह अपनी ओर से तुमपर कोई सज़ा भेज देगा। फिर तुम उसे पुकारोगे, लेकिन तुम्हारी पुकार सुनी नहीं जाएगी। - 2 ملاحظة
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32. ''क्या मैं तुम्हें ऐसी बातें न बताऊँ, जिनके ज़रिए अल्लाह गुनाहों को मिटा देता है और दर्जे ऊँचे कर देता है?"* सहाबा ने कहा : अवश्य ऐ अल्लाह के रसूल! फ़रमाया : "परेशानियों के बावजूद अच्छी तरह वज़ू करना, इन्सान का अधिक से अधिक मस्जिद जाना और नमाज़ के बाद अगली नमाज़ की प्रतीक्षा करना। यही पहरेदारी है।'' - 6 ملاحظة
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33. "क्या मैं तुम्हें तुम्हारा सबसे उत्तम कार्य न बताऊँ, जो तुम्हारे रब के निकट सबसे ज़्यादा सराहनीय, तुम्हारे दरजे को सबसे ऊँचा करने वाला*, तुम्हारे लिए सोना एवं चाँदी दान करने से बेहतर तथा इस बात से भी बेहतर है कि तुम अपने शत्रु से भिड़ जाओ और तुम उनकी गर्दन मार दो और वह तुम्हारी गर्दन मार दें?" सहाबा ने कहा : अवश्य ऐ अल्लाह के रसूल! तो फ़रमाया : "उच्च एवं महानअल्लाह का ज़िक्र करना।"
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34. नज्द का एक व्यक्ति अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया। उसके बाल बिखरे हुए थे। हम उसकी आवाज़ का गुंजन तो सुन रहे थे, मगर यह नहीं समझ पा रहे थे कि वह कह क्या रहा है? यहाँ तक कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के निकट आ गया। फिर हमने देखा कि वह इस्लाम के बारे में पूछ रहा है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : “ दिन-रात में पाँच नमाज़ें पढ़ना।” उसने कहा : इनके अलावा भी मुझपर कोई नमाज़ फ़र्ज़ है? आपने फ़रमाया : “नहीं, मगर यह कि तू अपनी खु़शी से पढ़े।” फिर रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : “और रमज़ान के रोज़े रखना।” उसने कहा : और तो कोई रोज़ा मुझपर फ़र्ज़ नहीं है? आपने फ़रमाया : "नहीं, मगर यह कि तू अपनी ख़ुशी से रखे।" फिर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उससे ज़कात का भी ज़िक्र किया। उसने कहा : मुझपर इसके अलावा भी कुछ देना फ़र्ज़ है? आपने फ़रमाया : “ नहीं, मगर यह कि तू अपनी ख़ुशी से सद्क़ा दे।” फिर वह व्यक्ति यह कहता हुआ वापस चला गया कि अल्लाह की क़सम, न मैं इससे ज़्यादा करूँगा और न कम। अतः अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : @“अगर यह सच कह रहा है, तो कामयाब हो गया।”
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35. "सबसे उत्तम दिन जिसमें सूरज निकला, जुमा का दिन है।* इसी दिन आदम पैदा हुए, इसी दिन जन्नत में दाख़िल हुए और इसी दिन वहाँ से निकाले गए। क़यामत भी जुमा के दिन ही क़ायम होगी।"
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36. : :
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37. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मक्का के रास्ते में चल रहे थे कि जुमदान नामी एक पर्वत के पास से गुज़रे। अतः फ़रमाया : "चलते रहो, यह जुमदान है। @अतुल्य विशेषता वाले लोग आगे हो गए।"* सहाबा ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! यह अतुल्य विशेषता वाले लोग कौन हैं? फ़रमाया : "अल्लाह को बहुत ज़्यादा याद करने वाले पुरुष और अल्लाह को बहुत-ज़्यादा याद करने वाली स्त्रियाँ।"
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38. मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आज़ाद किए हुए दास स़ौबान से मुलाक़ात की और कहा : मुझे किसी ऐसे कार्य के बारे में बताइए, जिसे करूँ, तो अल्लाह मुझे जन्नत में प्रवेश करा दे। उनका कहना है कि या मैंने यह कहा था : मुझे कोई ऐसा काम बताइए, जो अल्लाह के निकट सबसे महबूब हो। मेरी बात सुनकर वह चुप रहे। मैंने फिर प्रश्न किया, तो वह चुप रहे। मैंने तीसरी बार प्रश्न दोहराया, तो उन्होंने कहा : मैंने इसके बारे में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछा, तो आपने कहा : @''अधिक से अधिक अल्लाह के लिए सजदा करो, इसलिए कि तुम्हारे हर एक सजदे के बदले अल्लाह तुम्हारा एक दर्जा ऊँचा करता है और तुम्हारे एक गुनाह को मिटा देता है।''* मअदान कहते हैं : फिर मैं अबू दरदा से मिला और उनसे पूछा, तो उन्होंने भी उसी तरह कहा, जिस तरह सौबान ने कहा था।
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39. ऐ अल्लाह के रसूल! अच्छे व्यवहार का सबसे अधिक हक़दार कौन है? फ़रमायाः तेरी माँ, फिर तेरी माँ, फिर तेरी माँ, फिर तेरा बाप, फिर क्रमशः तेरा सबसे निकट का रिश्तेदार। - 4 ملاحظة
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40. "जिसने दो ठंडे समय की नमाज़ें पढ़ीं, वह जन्नत में जाएगा।" - 2 ملاحظة
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41. "मुसलमान से जब क़ब्र में सवाल होगा तो वह गवाही देगा कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं।"* इसी को प्रभुत्वशाली अल्लाह के इस फ़रमान में बयान किया गया है : (يُثَبِّتُ اللهُ الذِينَ آمَنُوا بالقَوْلِ الثَّابِتِ في الحَيَاةِ الدُّنْيَا وفي الآخِرَةِ)। [सूरा इबराहीम : 27]
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42. अल्लाह ने मेरे लिए मेरी उम्मत की चूक तथा भूलवश किए हुए और ज़बरदस्ती कराए गए पापकर्म को क्षमा कर दिया है। - 1 ملاحظة
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43. जहाँ भी रहो, अल्लाह से डरो तथा गुनाह के बाद नेकी कर लिया करो, जो उस गुनाह को मिटा देगी और लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करो। - 4 ملاحظة
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44. ''महान अल्लाह रात में हाथ फैलाता है, ताकि दिन में गुनाह करने वाला तौबा कर ले और दिन में हाथ फैलाता है, ताकि रात में गुनाह करने वाला तौबा कर ले, यहाँ तक कि सूरज अपने डूबने के स्थान से निकल आए।'' - 2 ملاحظة
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45. "आदमी के हर एक जोड़ पर, हर रोज़ जिसमें सूरज निकलता है, सदक़ा है।* दो व्यक्तियों के बीच न्याय करना सदक़ा है। किसी को उसके जानवर पर सवार होने में या उस पर उसका सामान लादने में मदद करना सदक़ा है, अच्छी बात सदक़ा है, नमाज़ की ओर उठने वाला हर क़दम सदक़ा है और रास्ते से कष्टदायक वस्तु को हटाना भी सदक़ा है।"
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46. तुम एक-दूसरे से ईर्ष्या न करो, न क्रय-विक्रय के समय बोली बढ़ाकर एक-दूसरे को धोखा दो, न एक-दूसरे से द्वेष रखो, न एक-दूसरे से पीठ फेरो और न तुममें से कोई किसी के सौदे पर सौदा करे तथा ऐ अल्लाह के बंदो! आपस में भाई-भाई बन जाओ। - 2 ملاحظة
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47. किसी मुसलमान का रक्त तीन कारणों में से किसी एक से हलाल हो सकता है;- पहला- वह शादीशुदा व्यभिचारी हो। -दूसरा- प्राण के बदले प्राण लिया जाए। - तीसरा- अपने धर्म को छोड़कर मुस्लिम समुदाय से अलग हो जाए।
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48. ''तुममें से कोई व्यक्ति उस समय तक मोमिन नहीं हो सकता, जब तक कि अपने भाई के लिए वही पसंद न करे, जो अपने लिए पसंद करता है।'' - 2 ملاحظة
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49. अत्याचार क़यामत के दिन अंधेरा ही अंधेरा होगा। - 3 ملاحظة
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50. "जिसने जुमे के दिन जनाबत (सहवास के बाद) का स्नान किया, फिर पहली घड़ी में मस्जिद की ओर चल पड़ा, उसने गोया एक ऊँट की क़ुरबानी दी;* जो दूसरी घड़ी में गया, उसने गोया एक गाय की क़ुरबानी दी; जो तीसरी घड़ी में गया, उसने गोया एक मेंढे की क़रबानी दी; जो चौथी घड़ी में गया, उसने गोया एक मुर्गी दान की और जो पाँचवीं घड़ी में निकला, उसने गोया एक अंडा दान किया। फिर जब इमाम निकल आता है, तो फ़रिश्ते उपस्थित होकर ख़ुतबा सुनने लगते हैं।"
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51. الحمد لله الذي أطعمني هذا، ورزقنيه من غير حول مني ولا قوة
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52. "जिसने अच्छी तरह वज़ू किया, फिर जुमे की नमाज़ के लिए आया और ध्यानपूर्वक ख़ुतबा सुना तथा ख़ामोश रहा, उसके दो जुमे के बीच तथा तीन दिन अधिक के सारे पाप क्षमा कर दिए जाते हैं।* तथा जिसने (जुमा के खुत्बा के समय) कंकड़ियों से खेला, उसने व्यर्थ काम किया।"
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53. मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फ़रमाते हुए सुना : “उच्च एवं बरकत वाला अल्लाह फरमाता है : @हे आदम के पुत्र! जब तक तू मुझे पुकारता रहेगा तथा मुझसे आशा रखेगा, मैं तेरे पापों को क्षमा करता रहूँगा, चाहे वह जितने भी हों, मैं उसकी परवाह नहीं करूँगा।* हे आदम के पुत्र! यदि तेरे पाप आकाश की ऊँचाइयों के समान हो जाएँ, फिर तू मुझसे क्षमा याचना करे, तो मैं तुझे क्षमा कर दूँगा और मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है।* हे आदम के पुत्र! यदि तू मेरे पास धरती के समान पाप लेकर इस हाल में आए कि तुमने मेरे साथ किसी को साझी नहीं किया था, तो मैं तेरे पास धरती के समान क्षमा लेकर आउँगा।" - 2 ملاحظة
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54. "हे लोगों, सलाम फैलाओ (प्रचारित करो), लोगों को खाना खिलाओ, रिश्तेदारियों को जोड़ो, रात्रि में जब लोग सो रहे होते हैं, तो उठ कर नमाज़ पढ़ो, (ऐसा करने पर) सुरक्षित रूप से जन्नत में प्रवेश पा जाओगे।"
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55. "धर्म आसान एवं सरल है और धर्म के मामले में जो भी उग्रता दिखाएगा, वह परास्त होगा। अतः, बीच का रास्ता अपनाओ, अच्छा करने की चेष्टा करो,* नेकी की आशा रखो तथा प्रातः एवं शाम और रात के अंधेरे में इबादत करके सहायता प्राप्त करो।"
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56. अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से पूछा गया कि कौन-सी चीज़ लोगों को सबसे ज़्यादा जन्नत में दाख़िल करेगी? तो आपने उत्तर दिया : "अल्लाह का भय और अच्छा आचरण।" साथ ही पूछा गया कि कौन-सी चीज़ सबसे ज़्यादा जहन्नम में दाख़िल करेगी? तो उत्तर दिया : "मुँह और शर्मगाह।"
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57. "तुममें से जो शादी की शक्ति रखता है, वह शादी कर ले। क्योंकि शादी निगाहों को नीचा रखने तथा शर्मगाह की सुरक्षा का एक प्रमुख कारण है। और जो शादी न कर सके, वह रोज़ा रख लिया करे, क्योंकि रोज़ा कामवासना को दुर्बल करने का काम करता है।"
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58. अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब सोने लगते, तो अपने दोनों हाथों में फूँकते और सूरा अल-इख़लास, सूरा अल-फ़लक़ और सूरा अन-नास पढ़कर दोनों हाथों को शरीर पर फेरते।
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59. तीन आदमी जन्नत में प्रवेश नहीं करेंगेः शराब का रसिया, रिश्ते-नाते को काटने वाला और जादू को सच मानने वाला। - 1 ملاحظة
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60. इमाम इस लिये बनाया गया है, ताकि उसका अनुसरण किया जाए। उस से मतभेद न करो। जब वह तकबीर कहे तो तुम लोग तकबीर कहो और जब रुकू करे तो तुम लोग रुकू करो और जबः سمع الله لمن حمده (समि अल्लाहु लेमन हमेदहु) कहे तो ربنا ولك الحمد (रब्बना व लकल हम्द) कहो। और जब सजदा करे तो सजदा करो और जब वह बैठ कर नमाज़ पढ़े तो तुम लोग भी बैठ कर नमाज़ पढ़ो।
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61. फ़ातिमा रज़यल्लाहु अनहा अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास चक्की पीसने के कारण हाथ में पड़े हुए छालों को दिखाने के लिए आईं। दरअसल उन्हें सूचना मिली थी कि आपके पास कुछ गुलाम आए हुए हैं। आपसे मुलाक़ात नहीं हो सकी, तो आइशा रज़ियललाहु अनहा के सामने अपनी बात रख गईं। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आए, तो आइशा रज़ियल्लाहु अनहा ने इसका ज़िक्र आपके समाने कर दिया। अली रज़ियल्लाहु अनहु आगे कहते हैं : यह सुन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमारे पास आए। उस समय हम दोनों बिस्तर पर जा चुके थे। आपको देख हम खड़े होने लगे, तो फ़रमाया : "दोनों अपनी-अपनी जगह रहो।" फिर आप आग बढ़े और हम दोनों के बीच बैठ गए। यहाँ तक कि मैंने आपके दोनों क़दमों की ठंडक अपने पेट में महसूस की। इसके बाद फ़रमाया : "@क्या मैं तुम दोनों को उससे बेहतर चीज़ न बताऊँ, जो तुमने माँगा है? जब तुम अपने बिस्तर में जाओ (अथवा सोने का स्थान ग्रहण करो) तो तैंतीस बार 'सुबहानल्लाह' कहो, तैंतीस बार 'अल-हमदु लिल्लाह' कहो और चौंतीस बार 'अल्लाहु अकबर' कहो। यह तुम दोनों के लिए सेवक से बेहतर है।"
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62. एक व्यक्ति ने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! क्या हममें से कोई अपने भाई अथवा अपने दोस्त से मिलते समय उसके लिए झुक जाए? फ़रमायाः नहीं। उसने कहाः क्या उसे गले से लगा ले और बोसा दे? फ़रमायाः नहीं। उसने कहाः फिर क्या उसका हाथ पकड़े और उससे मुसाफ़हा करे? फ़रमायाः हाँ। - 1 ملاحظة
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63. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सब लोगों से ज़्यादा दानी थे। खासकर रमज़ान में जब जिबरील अलैहिस्सलाम से आपकी मुलाक़ात होती तो और अधिक दानी हो जाते।* जिबरील अलैहिस्सलाम रमज़ान में हर रात आपसे मुलाक़ात करते और आप को क़ुरआन मजीद का दौर फ़रमाते। ऐसे में, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सदक़ा करने में आंधी से भी ज़्यादा द्रुतगामी हो जाते थे।
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64. "जिसने यह कहकर क़सम खाई कि लात तथा उज़्ज़ा की क़सम, वह 'ला इलाहा इल्लल्लाह' कहे और जिसने अपने साथी से कहा कि आओ हम जुआ खेलें, वह सद्क़ा करे।"
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65. "क्या तुम जानते हो कि निर्धन कौन है?*" सहाबा ने कहा : हमारे यहाँ निर्धन वह है, जिसके पास न दिरहम हो न सामान। आपने कहा : "मेरी उम्मत का निर्धन वह व्यक्ति है, जो क़यामत के दिन नमाज़, रोज़ा और ज़कात के साथ आएगा, लेकिन इस अवस्था में उपस्थित होगा कि किसी को गाली दी होगी, किसी पर दुष्कर्म का आरोप लगा रखा होगा, किसी का रक्त बहा रखा होगा और किसी को मार रखा होगा। अतः उसकी कुछ नेकियाँ इसे दे दी जाएँगी और कुछ नेकियाँ उसे दे दी जाएँगी। फिर अगर उसके ऊपर जो अधिकार हैं, उनके भुगतान से पहले ही उसकी नेकियाँ समाप्त हो जाएँगी, तो हक़ वालों के गुनाह लेकर उसके ऊपर डाल दिए जाएँगे और फिर उसे आग में फेंक दिया जाएगा।" - 2 ملاحظة
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66. ''तुममें से हर एक के साथ अल्लाह बात करेगा, इस तरह कि उसके और उसके रब के बीच कोई अनुवादक न होगा।* वह अपने दायीं ओर देखेगा तो अपने भेजे हुए अमल को देखेगा और बायीं ओर देखेगा तो अपने आगे भेजे हुए अमल को पाएगा और अपने सामने देखेगा तो आग ही आग पाएगा। आग से डरो, चाहे एक खजूर के टुकड़े द्वारा क्यों न हो।''
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67. ऐ रुवैफ़े, हो सकता है कि तुम्हें लंबी आयु मिले। लोगों को बता देना कि जो अपनी दाढ़ी में गिरह लगाएगा, ताँत गले में डालेगा या किसी पशु के गोबर अथवा हड्डी से इस्तिंजा करेगा, मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) उससे बरी हैं।
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68. "जो व्यक्ति मेरे हवाले से कोई बात बताए और उसे लगता हो कि वह झूठ है, तो वह झूठों में से एक है।" - 4 ملاحظة
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69. :أعوذ بالله العظيم، وبوجهه الكريم، وسلطانه القديم، من الشيطان الرجيم
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70. : : : :
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71. अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने वज़ू किया, तो कुल्ली की, फिर नाक में पानी डालकर नाक झाड़ा, फिर तीन बार चेहरे को धोया, दाहिने तथा बाएँ हाथ को तीन-तीन बार धोया, अपने सिर का मसह हाथ के बचे हुए पानी से नहीं बल्कि नए पानी से किया और दोनों पैरों को साफ़ करके धोया। - 1 ملاحظة
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72. “अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक साअ से पाँच मुद तक पानी से स्नान करते और एक मुद पानी से वज़ू करते थे।”
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73. “जो मुसलमान अच्छी तरह वज़ू करता है, फिर खड़े होकर मन तथा तन के साथ दो रकात नमाज़ पढ़ता है, उसके लिए जन्नत अनिवार्य हो जाती है।”* वह कहते हैं कि मैंने कहा : कितनी अच्छी बातें हैं। यह सुनकर एक व्यक्ति मेरे सामने से कहता है : इससे पहले की बातें इससे भी अच्छी थीं। मैंने देखा, तो वह उमर रज़ियल्लाहु अनहु थे। उन्होंने कहा : मैंने देखा है कि तुम अभी-अभी आए हो। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने -इससे पहले- फ़रमाया था : “तुममें से जो भी सम्पूर्ण तरीक़े से वज़ू करता है और फिर कहता है : " أَشْهَدُ أَنْ لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ وَأَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُ اللهِ وَرَسُولُهُ" (मैं इस बात की गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं और मुहम्मद अल्लाह के बंदे तथा रसूल हैं) उसके लिए जन्नत के आठों दरवाज़े खोल दिए जाएँगे। वह जिससे चाहेगा, प्रवेश करेगा।” - 2 ملاحظة
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74. "फ़रिश्ते उस घर में प्रवेश नहीं करते जिस घर में कुत्ते और चित्र हों।"
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75. "बुतों तथा अपने बाप- दादाओं की क़सम मत खाओ।"
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76. जिसने जुमे के दिन वज़ू किया, उसने सुन्नत पर अमल किया और अच्छा किया तथा जिसने स्नान किया, उसका यह कार्य उससे बेहतर है। - 1 ملاحظة
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77. जुमे के दिन फ़रिश्ते मस्जिद के द्वार पर खड़े हो जाते हैं और सिलसिलेवार मस्जिद में आने वालों के नाम लिखते जाते हैं
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78. ''मेरे सहाबा को बुरा-भला मत कहो। तुममें से कोई यदि उहुद पर्वत के बराबर सोना ख़र्च कर दे, तब भी उनके एक या आधा मुद खर्च करने के बराबर नेकी प्राप्त नहीं कर सकता।"
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79. ''पुरुषों के लिए सर्वोत्तम सफ़ सबसे प्रथम सफ है और सबसे बुरी सफ़ सबसे अंतिम सफ़ है। जबकि महिलाओं के लिए सबसे अच्छी सफ़ अंतिम सफ़ है तथा सबसे बुरी सफ़ सबसे प्रथम सफ़ है।"
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80. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक दिन हमें फ़ज्र की नमाज़ पढ़ाई, फिर पूछा : “क्या अमुक व्यक्ति उपस्थित है?” लोगों ने कहा : नहीं। आपने पुनः पूछा : “क्या अमुक व्यक्ति उपस्थित है?” लोगों ने कहा : नहीं। आपने फ़रमाया : @“यह दो नमाज़ें मुनाफिकों के लिए सर्वाधिक कठिन हैं और यदि वह जान लेते कि इनमें कितना सवाब है, तो वे अवश्य आते, चाहे (हाथ एवं) घुटनों के बल घिसटते हुए ही क्यों न हो।* प्रथम सफ (पंक्ति) फरिश्तों की सफ के समान है। यदि तुम इसकी फज़ीलत (महत्व) जान लेते, तो इसके लिए जल्दी करते। एक आदमी की नमाज़ दूसरे आदमी के साथ अकेले नमाज़ पढ़ने से बेहतर है और दो आदमियों के साथ नमाज़ पढ़ना एक आदमी के साथ नमाज़ पढ़ने से बेहतर है। लोग (नमाज़ में) जितने अधिक होंगे, नमाज़ अल्लाह तआला के समीप उतनी अधिक प्रिय होगी।”
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81. "अल्लाह ने मेरी उम्मत की वह बातें माफ़ कर रखी हैं, जो उसके दिलों में आएँ, जब तक अमल न करे अथवा ज़ुबान से न बोले।"
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82. अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक अंसारी महिला से, जिसका नाम अब्दुल्लाह बिन अब्बास ने बताया था, लेकिन मैं उसका नाम भूल गया हूँ, पूछा : "तुझे हमारे साथ हज करने से किस चीज़ ने रोका?" उसने उत्तर दिया : हमारे पास केवल दो ही ऊँट थे। एक पर सवार होकर मेरे बच्चों के पिता और मेरे बेटे ने हज किया, जबकि दूसरा ऊँट हमारे पास पानी लाने के लिए छोड़ गए। उसकी बात सुन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : @"जब रमज़ान आए, तो तुम उमरा कर लो। क्योंकि रमज़ान में किया गया उमरा हज के बराबर है।" - 2 ملاحظة
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83. :
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84. मैं अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ मौजूद था। आप एक ऐसी जगह पहुँचे, जहाँ लोग कूड़ा-करकट फेंका करते हैं और आपने खड़े होकर पेशाब किया।* मैं ज़रा दूर हटकर खड़ा हो गया, तो फ़रमाया : "करीब आ जाओ।" तब मैं क़रीब आकर आपकी दोनों एड़ियों के पास खड़ा हो गया। इसके बाद आपने वज़ू किया और दोनों मोज़ों पर मसह किया।
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