वर्गीकरण:
عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ مَالِكٍ ابْنِ بُحَيْنَةَ رضي الله عنه:

أَنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ إِذَا صَلَّى فَرَّجَ بَيْنَ يَدَيْهِ حَتَّى يَبْدُوَ بَيَاضُ إِبْطَيْهِ.
[صحيح] - [متفق عليه]
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अब्दुल्लाह बिन मालिक बिन बुहैना- रज़ियल्लाहु अन्हुम- का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब नमाज़ पढ़ते, तो (सजदे की अवस्था में) अपने दोनों बाज़ुओं को इतना हटाकर रखते कि आपकी बगलों का उजलापन प्रकट हो जाता।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब सजदे में जाते, तो अपने दोनों बाज़ुओं को पहलुओं से अलग रखते, ताकि दोनों हाथ भी नमाज़ में संतुलित रहें। बाजुओं और पहलुओं के बीच दूरी इतनी होती कि बगलों का उजलापन प्रकट होने लगता। ऐसा इसलिए संभव होता था कि नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- या तो इमाम होते थे या फिर अकेले नमाज़ पढ़ते थे। रही बात मुक़तदी की, जिसके पड़ोसी को बाज़ू ज़्यादा फैलाने से कष्ट हो, उसके लिए ऐसा करना उचित नहीं होगा।

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