عَن عَبْدِ اللَّهِ بنِ مَسْعُودٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: كُنَّا مَعَ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَقَالَ:

«مَنِ اسْتَطَاعَ البَاءَةَ فَلْيَتَزَوَّجْ، فَإِنَّهُ أَغَضُّ لِلْبَصَرِ، وَأَحْصَنُ لِلْفَرْجِ، وَمَنْ لَمْ يَسْتَطِعْ فَعَلَيْهِ بِالصَّوْمِ، فَإِنَّهُ لَهُ وِجَاءٌ».
[صحيح] - [متفق عليه]
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अब्दुल्लाह बिन मसऊद -रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : "ऐ युवकों के समूह! तुममें से जो शादी की शक्ति रखता है, वह शादी कर ले। क्योंकि शादी निगाहों को नीचा रखने तथा शर्मगाह की सुरक्षा का एक प्रमुख कारण है। और जो शादी न कर सके, वह रोज़ा रखे। क्योंकि रोज़ा उसके लिए ढाल है।"
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

चूँकि शर्मगाह की रक्षा और पाकदामनी अनिवार्य है और अश्लीलता तथा व्यभिचार हराम है, फिर व्यभिचार का मार्ग ईमान की कमज़ोरी के साथ प्रचंड कामवासना से प्रशस्त होता है और जवानी कामवासना का पराकाष्ठा है, इसलिए अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने युवकों को संबोधित करते हुए उन्हें पाकदामन रहने का मार्ग बताया। आपने कहा कि उनमें से जिसके पास निकाह की ज़िम्मेवारियाँ, जैसे महर, नान व नफ़क़ा तथा रहने के लिए घर आदि उपलब्ध कराने की शक्ति हो, वह शादी कर ले। क्योंकि शादी इनसान को अनुचित स्थान पर नज़र डालने से रोकती है और शर्मगाह को व्यभिचार से सुरक्षित रखती है। और जो निकाह की ज़िम्मेवारियों को निबाह नहीं सकता और उसे निकाह की ज़रूरत भी हो, तो उसे रोज़ा रखने की प्रेरणा दी, क्योंकि रोज़ा रखने से सवाब भी मिलेगा और खाने-पीने से दूर रहने के कारण कामवासना की तीव्रता में कमी आएगी, नफ़्स कमज़ोर होगा और रक्त की वह नलियाँ बंद हो जाएँगी, जिनसे शैतान अंदर जाता है। यहाँ बताया गया है कि रोज़ा कामवासना को उसी प्रकार तोड़ देता है, जिस तरह अंड-कोष निकाल लिए जाने के बाद उसका अंत हो जाता है।

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