वर्गीकरण:
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:

«إِنَّ اللَّهَ تَجَاوَزَ عَنْ أُمَّتِي مَا حَدَّثَتْ بِهِ أَنْفُسَهَا، مَا لَمْ تَعْمَلْ أَوْ تَتَكَلَّمْ».
[صحيح] - [متفق عليه]
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अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अंहु) का वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "अल्लाह ने मेरी उम्मत की वह बातें माफ़ कर रखी हैं, जो उनके दिलों में आएँ, जब तक अमल न करे अथवा ज़ुबान से न बोले।" क़तादा कहते हैंः यदि कोई व्यक्ति दिल ही दिल में तलाक़ दे दे, तो उसे कुछ नहीं माना जाएगा।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

इस हदीस में कहा गया है कि मन में आने वाले ख़यालात तथा विचारों के बारे में इन्सान पूछा नहीं जाएगा, जब तक उन्हें ज़बान से न बोले अथवा उनपर अमल न करे। यह हदीस इस बात का भी प्रमाण है कि दिल में सोच लेने मात्र से तलाक़ नहीं पड़ती, क्योंकि यह वाणी नहीं है और इस प्रकार के अहकाम ज़बान से निकलने वाले शब्द से लागू होते हैं, दिल के अमल से नहीं।

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