عَنْ سَهْلِ بْنِ مُعَاذِ بْنِ أَنَسٍ عَنْ أَبِيهِ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:

«مَنْ أَكَلَ طَعَامًا فَقَالَ: الحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي أَطْعَمَنِي هَذَا وَرَزَقَنِيهِ مِنْ غَيْرِ حَوْلٍ مِنِّي وَلاَ قُوَّةٍ، غُفِرَ لَهُ مَا تَقَدَّمَ مِنْ ذَنْبِهِ».
[حسن] - [رواه أبو داود والترمذي وابن ماجه وأحمد]
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मुआज़ बिन अनस (रज़ियल्लाहु अंहु) का वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "जिसने खाना खाने के बाद यह दुआ पढ़ीः 'الحمدُ للهِ الذي أَطْعَمَنِي هَذَا، وَرَزَقْنِيهِ مِنْ غَيرِ حَوْلٍ مِنِّي وَلَا قُوَّةٍ' (अर्थात सारी प्रशंसा अल्लाह की है, जिसने मुझे यह खाना खिलाया तथा यह रोज़ी दी, जबकि इसमें मेरी शक्ति तथा सामर्थ्य का कोई दख़ल नहीं है) उसके पिछले सारे गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।"
ह़सन - इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है ।

व्याख्या

इनसान को चाहिए कि जब वह कुछ खाए, पवित्र एवं उच्च अल्लाह की प्रशंसा करे और कहे : (الحمد لله الذي أطعمني هذا ورزقنيه من غير حول مني ولا قوة) अर्थात "सारी प्रशंसा अल्लाह की है, जिसने मुझे यह खाना खिलाया तथा यह रोज़ी दी, जबकि इसमें मेरी शक्ति तथा सामर्थ्य का कोई दख़ल नहीं है।" इसके द्वारा आपने भोजन प्राप्त करने की दो पद्धतियों की ओर इशारा किया है। शक्तिशाली व्यक्ति ज़ाहिरी तौर पर अपनी शक्ति के द्वारा प्राप्त करता है और दुर्बल व्यक्ति भी आजीविका प्राप्त करने के रास्ते ढूँढता है। ऐसे में इस ज़िक्र द्वारा आपने इशारा कर दिया कि उसे केवल अल्लाह के अनुग्रह से प्राप्त किया जाता है और उसके सिवा किसी और का इसमें कोई दख़ल नहीं है।

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