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عن أبي موسى الأشعري رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم:
«إِذَا مَرِضَ الْعَبْدُ أَوْ سَافَرَ كُتِبَ لَهُ مِثْلُ مَا كَانَ يَعْمَلُ مُقِيمًا صَحِيحًا».

[صحيح] - [رواه البخاري] - [صحيح البخاري: 2996]
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अबू मूसा अशअरी रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है,, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"जब बंदा बीमार होता है या यात्रा में निकलता है, तो उसके लिए उसी तरह की इबादतों का सवाब लिखा जाता है, जो वह घर में रहते तथा स्वस्थ रहते समय किया करता था।"

[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 2996]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम यहाँ अल्लाह के एक अनुग्रह का उल्लेख कर रहे हैं। बता रहे हैं कि जब कोई मुसलमान स्वस्थ रहते हुए और घर में रहने की अवस्था में नियमित रूप से कोई काम करता रहा हो और फिर बीमारी के कारण वह उस काम को कर न पाए या सफ़र में निकलने की वजह से उसे छोड़ना पड़े या किसी भी मजबूरी के कारण उसे न कर सके, तो उसके लिए उतना ही सवाब लिखा जाएगा, जितना स्वस्थ होने या घर रहने पर उस काम को करने से मिलता।

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हदीस का संदेश

  1. अल्लाह, बंदों पर बड़ा अनुग्रहशील है।
  2. नेकी के काम अधिक से अधिक करने और स्वास्थ्य तथा फ़ुर्सत को ग़नीमत जानने की प्रेरणा।
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