عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه عَنْ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:
«إِذَا لَقِيَ أَحَدُكُمْ أَخَاهُ فَلْيُسَلِّمْ عَلَيْهِ، فَإِنْ حَالَتْ بَيْنَهُمَا شَجَرَةٌ أَوْ جِدَارٌ أَوْ حَجَرٌ ثُمَّ لَقِيَهُ فَلْيُسَلِّمْ عَلَيْهِ أَيْضًا».
[صحيح] - [رواه أبو داود] - [سنن أبي داود: 5200]
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अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"जब तुममें से कोई अपने भाई से मिले, तो उसे सलाम करे। फिर, अगर दोनों के बीच पेड़, दीवार या पत्थर आ जाए और वह उससे (दोबारा) मिले, तो फिर उसे सलाम करे।"
[सह़ीह़] - [इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है।] - [سنن أبي داود - 5200]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस बात की प्रेरणा दे रहे हैं कि एक मुसलमान जब भी अपने भाई से मिले तो उसे सलाम करे। यहाँ तक कि अगर दोनों साथ चल रहे हों और इसी दौरान बीच में पेड़, दीवार या कोई बड़ा पत्थर आ जाए, तो दोबारा मिलते समय फिर से उसे सलाम करे।