عن أبي موسى الأشعري رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم : «إذا مَرِض العَبد أو سافر كُتِب له مثلُ ما كان يعمل مقيمًا صحيحًا».
[صحيح] - [رواه البخاري]
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अबू मूसा अशअरी- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः जब बंदा बीमार होता है या यात्रा में निकलता है तो उसके लिए उसी तरह की इबादतों का सवाब लिखा जाता है, जो वह घर में रहते तथा स्वस्थ रहते समय किया करता था।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।

व्याख्या

जो इंसान स्वस्थ रहते हुए और खुशहाली में कोई नेक कर्म करता था, फिर बीमार हो गया और उसके अंदर उस अमल को करने की सकत नहीं रही, तो उसकी कर्मपंजी में उतना ही पुण्य लिख दिया जाता है, जितना उसे स्वस्थ रहते हुए करने पर मिलने वाला था। यात्रा और मासिक धर्म आदि जैसी रुकावटों का मामला भी ऐसा ही है।

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हदीस का संदेश

  1. इससे अल्लाह की करूणा और अपने बंदों पर उसकी असीम दया का पता चलता है।
  2. जिस शख्स की दिनचर्या में कुछ खास नेक कर्म शामिल हों और वह जायज़ कारण जैसे यात्रा या बीमारी आदि से उन्हें अंजाम नहीं दे पाया, हालाँकि उन्हें वह सकत रखते हुए अवश्य करता, तो उसकी कर्मपंजी में उतना पुण्य लिख लिया जाता है, जितना उसे घर रहते हुए और स्वास्थ्य की हालत में करने पर मिल सकता था।
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