عن عائشة رضي الله عنها مرفوعاً: «لا تسبوا الأموات؛ فإنهم قد أفضوا إلى ما قدموا».
[صحيح] - [رواه البخاري]
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आइशा (रज़ियल्लाहु अंहा) नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करते हुए कहती हैंः "मरे हुए लोगों को बुरा-भला न कहो, क्योंकि वे उसकी ओर जा चुके हैं, जो कर्म उन्होंने आगे भेजे हैं।"
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।

व्याख्या

यह हदीस मुर्दों को गाली देने और उनका अपमान करने के हराम होने का प्रमाण है। तथा यह कि यह हीन नैतिकता का उदाहरण है। इस मनाही की हिकमत हदीस के शेष भाग में कुछ इस तरह आई है : "فإنهم قد أفضوا إلى ما قدموا" यानी वे अपने भेजे हुए अच्छे या बुरे कर्मों को पहुँच चुके हैं। और फिर यह गाली उन्हें पहुँचेगी भी नहीं, बल्कि जीवित लोगों को कष्ट देगी।

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हदीस का संदेश

  1. यह हदीस मरे हुए लोगों को गाली देना हराम होने का प्रमाण है और इसकी व्यापकता के अंदर मुसलमान तथा काफ़िर दोनों शामिल हैं।
  2. मुर्दों को बुरा-भला कहने की मनाही से वह परिस्थिति अपवाद होगी, जब उनकी कमियों-खामियों को बयान करने का कोई फ़ायदा हो।
  3. मरे हुए लोगों को बुरा-भला कहने की मनाही की हिकमत हदीस में यह बयान की गई है कि वे अपने भेजे हुए भले अथवा बुरे कर्मों को पहुँच चुके हैं, इसलिए उन्हें बुरा-भला कहने से कोई फ़ायदा नहीं होने वाला। साथ ही यह कि उससे उसके जीवित रिश्तेदारों को कष्ट होगा।
  4. इनसान को कोई ऐसी बात नहीं करनी चाहिए, जिसका कोई फ़ायदा न हो।
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