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عن سَمُرَة بن جندبٍ رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم:
«أَحَبُّ الْكَلَامِ إِلَى اللهِ أَرْبَعٌ: سُبْحَانَ اللهِ، وَالْحَمْدُ لِلهِ، وَلَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ، وَاللهُ أَكْبَرُ، لَا يَضُرُّكَ بِأَيِّهِنَّ بَدَأْتَ».

[صحيح] - [رواه مسلم] - [صحيح مسلم: 2137]
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समुरा बिन जुनदुब रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है, उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है :
“अल्लाह के निकट सबसे प्रिय वाक्य चार हैं : सुबहान अल्लाह (अल्लाह पाक है), अल-हम्दु लिल्लाह (समस्त प्रकार की प्रशंसा अल्लाह ही के लिए हैं), ला इलाहा इल्लल्लाह (अल्लाह के अतिरिक्त कोई सच्चा पूज्य नहीं है) और अल्लाहु अकबर (अल्लाह सबसे बड़ा है)। इनमें से जिस से चाहो आरंभ करो, हानि की कोई बात नहीं है ”

[सह़ीह़] - [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 2137]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि अल्लाह के निकट सबसे प्रिय वाक्य चार हैं :
सुबहान अल्लाह : इसका अर्थ है अल्लाह को हर कमी से पवित्र घोषित करना।
अल-हम्दु लिल्लाह : इसका मतलब है अल्लाह को हर एतबार से संपूर्ण बताना, उससे प्रेम रखना और उसका सम्मान करना।
ला इलाहा इल्लल्लाह : इसका अर्थ यह है कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सच्चा पूज्य नहीं है।
अल्लाहु अकबर : अल्लाह सबसे शक्तिशाली, सबसे महान और सबसे सामर्थ्यवान है।
इन वाक्यों की फ़ज़ीलत तथा इनके सवाब की प्राप्ति के लिए इनको हदीस में उल्लिखित कर्म के अनुसार कहना अनिवार्य नहीं है।

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हदीस का संदेश

  1. इस्लामी शरीयत एक आसान शरीयत है। यही कारण है कि इस बात की अनुमति दी गई है कि इन चार शब्दों में से जिससे चाहें आरंभ कर सकते हैं।
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