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عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه أَنَّهُ قَالَ:
قِيلَ: يَا رَسُولَ اللهِ، مَنْ أَسْعَدُ النَّاسِ بِشَفَاعَتِكَ يَوْمَ الْقِيَامَةِ؟ قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: «لَقَدْ ظَنَنْتُ يَا أَبَا هُرَيْرَةَ أَنْ لَا يَسْأَلَنِي عَنْ هَذَا الْحَدِيثِ أَحَدٌ أَوَّلُ مِنْكَ؛ لِمَا رَأَيْتُ مِنْ حِرْصِكَ عَلَى الْحَدِيثِ، أَسْعَدُ النَّاسِ بِشَفَاعَتِي يَوْمَ الْقِيَامَةِ، مَنْ قَالَ لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ خَالِصًا مِنْ قَلْبِهِ أَوْ نَفْسِهِ»».

[صحيح] - [رواه البخاري] - [صحيح البخاري: 99]
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अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है, वह कहते हैं :
कहा गया कि ऐ अल्लाह के रसूल! क़यामत के दिन आपकी सिफ़ारिश से कौन ज़्यादा हिस्सा पायेगा, तो आपने फ़रमाया : "अबू हुरैरा! मेरा ख़्याल था कि तुमसे पहले कोई मुझसे यह बात नहीं पूछेगा, क्योंकि मैं देखता हूँ कि तुम्हें हदीस से बहुत लगाव है। क़यामत के दिन मेरी सिफ़ारिश प्राप्त करने की सबसे बड़ी ख़ुश नसीबी उस व्यक्ति को हासिल होगी, जिसने अपने दिल या साफ़ नीयत से “ला इलाहा इल्लल्लाह” कहा हो।"

[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 99]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि क़यामत के दिन आपकी सिफ़ारिश प्राप्त करने की सबसे बड़ी ख़ुश नसीबी उस व्यक्ति को हासिल होगी, जिसने अपने दिल या साफ़ नीयत से “ला इलाहा इल्लल्लाह” कहा हो।" यानी इस बात का इक़रार किया हो कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और शिर्क तथा रियाकारी जैसी चीज़ों से पाक-साफ़ रहा हो।

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हदीस का संदेश

  1. इस बात का सबूत कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आख़िरत में सिफ़ारिश करेंगे और आपकी सिफ़ारिश केवल एकेश्वरवादी लोगों को प्राप्त होगी।
  2. अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सिफ़ारिश का मतलब है, आपका जहन्नम का हक़दार बन चुके एकेश्वरवादियों के बारे में यह सिफ़ारिश करना कि उनको अल्लाह जहन्नम में न डाले तथा जहन्नम में जा चुके लोगों के बारे में यह सिफ़ारिश करना कि उनको जहन्नम से निकाल दे।
  3. विशुद्ध रूप से अल्लाह के लिए कलिमा-ए-तौहीद का इक़रार करने की फ़ज़ीलत और उसका महत्वपूर्ण प्रभाव।
  4. कलिमा-ए-तौहीद को संपूर्णरूप मानने का मतलब है, उसके मायने को जानना और उसके तक़ाज़ों (मांग) पर अमल करना।
  5. अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु की फ़ज़ीलत तथा उनका ज्ञान अर्जित करने का शौक़।
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