عن أبي هريرة رضي الله عنه مرفوعا: "قال تعالى : أنا أغنى الشركاء عن الشرك؛ من عمل عملا أشرك معي فيه غيري تركتُه وشِرْكَه".
[صحيح] - [رواه مسلم]
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अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "अल्लाह तआला का फ़रमान हैः मैं तमाम साझेदारों से अधिक, साझेदारी से बेनियाज़ हूँ। जिसने कोई काम किया और उसमें किसी को मेरा साझी ठहराया, मैं उसको और उसके साझी बनाने के कार्य को छोड़ देता हूँ।"
सह़ीह़ - इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अपने रब से रिवायत करते हैं (याद रहे कि इस तरह की हदीस को 'हदीसे क़ुदसी' कहा जाता है) कि वह उस कार्य से अपने बरी होने का इज़हार करता है, जिसमें किसी की साझेदारी राह पा गई हो, चाहे वह दिखावे के रूप में हो या किसी अन्य रूप में, क्योंकि अल्लाह उसी कार्य को ग्रहण करता है, जो केवल उसकी प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए किया जाए।

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हदीस का संदेश

  1. शिर्क के सभी स्वरूपों से सावधान किया गया है और बताया गया है कि वह कर्म के ग्रहणयोग्य होने में रुकावट है।
  2. किसी भी अमल को विशुद्ध रूप से अल्लाह के लिए करना और उसे शिर्क की गंदगियों से पवित्र रखना ज़रूरी है।
  3. अल्लाह तआला का एक गुण, बात करना भी है।
  4. इसमें इस बात का सबूत है कि सर्वशक्तिमान अल्लाह एकदम निस्पृह (बेनियाज़) है।
  5. अल्लाह तआला बस उसी कर्म को ग्रहण करता है, जो केवल उसकी ख़ुशी प्राप्त करने की नीयत से किया जाता है।
  6. इसमें अल्लाह तआला की पूर्ण दानशीलता का प्रमाण है।
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