عَنْ عَائِشَةَ رضي الله عنها قَالَتْ:
قُلْتُ: يَا رَسُولَ اللهِ، ابْنُ جُدْعَانَ كَانَ فِي الْجَاهِلِيَّةِ يَصِلُ الرَّحِمَ، وَيُطْعِمُ الْمِسْكِينَ، فَهَلْ ذَاكَ نَافِعُهُ؟ قَالَ: «لَا يَنْفَعُهُ، إِنَّهُ لَمْ يَقُلْ يَوْمًا: رَبِّ اغْفِرْ لِي خَطِيئَتِي يَوْمَ الدِّينِ».
[صحيح] - [رواه مسلم] - [صحيح مسلم: 214]
المزيــد ...
आइशा रज़ियल्लाहु अनहा का वर्णन है, वह कहती हैं :
मैंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! इब्न-ए-जुदआन जाहिलियत के ज़माने में रिश्ते-नातों का ख़्याल रखता था और निर्धनों को खाना खिलाता था। क्या यह बातें उसके लिए लाभकारी सिद्ध होंगी? आपने कहा : "इन कामों का उसे कोई लाभ नहीं मिलेगा। उसने कभी यह नहीं कहा : ऐ मेरे रब! प्रतिफल के दिन मेरे गुनाह माफ़ कर देना।"
[सह़ीह़] - [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 214]
इब्ने-ए-जुदआन इस्लाम से पहले क़ुरैश का एक सरदार था। उसने कई अच्छे काम किए थे। जैसे रिश्ते-नातों का ख़याल रखता था और निर्धनों को खाना खिलाता था। वह इस तरह के कई अन्य काम भी किया करता था, जिनकी प्रेरणा खुद इस्लाम ने भी दी है। आपने उसके बारे में बताया कि यह काम आख़िरत में उसके लिए कुछ लाभकारी नहीं होंगे। इसका कारण यह है कि उसका अल्लाह पर विश्वास नहीं था और उसने कभी नहीं कहा था कि ऐ मेरे रब! क़यामत के दिन मेरे गुनाहों को माफ़ कर देना।