عن أنس بن مالك رضي الله عنه مرفوعاً: «يَسِّرُوا وَلاَ تُعَسِّرُوا، وَبَشِّرُوا وَلاَ تُنَفِّرُوا».
[صحيح] - [متفق عليه]
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अनस बिन मालिक -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है कि नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : "आसानी पैदा करो और कठिनाई में न डालो तथा सुसमाचार सुनाओ एवं नफ़रत न दिलाओ।"
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लोगों का बोझ हल्का करने और उनको आसानी प्रदान करने को पसंद करते थे। यही कारण है कि जब भी आपको दो चीज़ों में से किसी एक चीज़ को चुनने का अख़्तियार दिया जाता, तो दोनों में अधिक आसान को चुनते। यह और बात है कि वह हराम हो। आपके शब्द "आसानी पैदा करो और कठिनाई में न डालो" का अर्थ यह है कि सारी परिस्थितियों में इन दो बातों का ख़याल रखो। जबकि आपके शब्द "सुसमाचार सुनाओ एवं नफ़रत न दिलाओ" में आए हुए शब्द 'बशारत' का अर्थ है अच्छी बात की सूचना देना और 'तनफ़ीर' उसका विपरीतार्थक शब्द है और उसका अर्थ है, बुरी बात और बुराई की सूचना देना।

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हदीस का संदेश

  1. एक मोमिन का कर्तव्य यह है कि वह लोगों को अल्लाह से निकट करे और अच्छे काम की प्रेरणा दे।
  2. अल्लाह की ओर बुलाने वाले को चाहिए कि वह हिकमत के साथ लोगों को इसलाम का संदेश पहुँचाने की कैफ़ियत पर ग़ौर करे।
  3. सुसमाचार सुनाने के नतीजे में आह्वानकर्ता तथा उसके आह्वान के प्रति लोगों के अंदर उल्लास, तवज्जो और संतोष की भावना पैदा होती है।
  4. कठिनाई में डालने से आह्वानकर्ता की बात के प्रति दूरी, संदेह तथा शंका की भावना जन्म लेती है।
  5. बंदों पर अल्लाह की बेपनाह दया, जिसने उनके लिए एक उदारता पर आधारित धर्म और आसान शरीयत का चयन किया है।
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