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عن أبي هريرة رضي الله عنه أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال:
«كان رجلٌ يُدَايِنُ الناسَ، فكان يقول لفتاه: إذا أتيتَ مُعسِرًا فتجاوز عنه، لعل اللهَ يَتجاوزُ عنا، فلقي اللهَ فتجاوز عنه».

[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح مسلم: 1562]
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अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"एक व्यक्ति लोगों को क़र्ज़ देता और अपने सेवकों से कहा करता कि जब किसी ऋण चुकाने में असमर्थ व्यक्ति के पास जाओ तो उसके क़र्ज़ की अनदेखी करो। हो सकता है कि अल्लाह हमारे गुनाहों की अनदेखी करे। तो जब वह मरने के बाद, अल्लाह से मिला तो अल्लाह ने उसे क्षमा कर दिया।"

सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक व्यक्ति के बारे में बता रहे हैं, जो लोगों को क़र्ज़ देता था या सामान उधार बेचता था तथा अपने गुलाम से, जो लोगों के पास क़र्ज़ वसूलने जाया करता था, कहता था : जब तुम किसी क़र्ज़दार के पास जाओ और उसके पास क़र्ज़ अदा करने के लिए कुछ न हो, तो उसके कर्ज़ की अनदेखी करो। यानी या तो उसे कुछ समय दे दो या फिर बहुत ज़ोर देकर न माँगो या फिर उसके पास जो कुछ हो, उसे ले लो चाहे वह कितना भी कम हो। ऐसा वह इस उम्मीद में कहा करता था कि हो सकता है कि इसी के कारण उसे अल्लाह क्षमा कर दे। चुनांचे जब उस व्यक्ति की मृत्यु हुई तो अल्लाह ने उसे माफ़ कर दिया।

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हदीस का संदेश

  1. लोगों के साथ लेन-देन करते समय उपकार करना, क्षमा करना और अक्षम एवं दिवालिये को माफ़ करना क़यामत के दिन मुक्ति की प्राप्ति का एक कारण और माध्यम है।
  2. सृष्टि पर उपकार करना, अल्लाह के प्रति निष्ठावान् रहना और उसकी रहमत की आशा रखना गुनाहों की क्षमा का एक कारण है।
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