عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللهُ عَنْهُ قَالَ:
كَانَ أَهْلُ الْكِتَابِ يَقْرَؤُونَ التَّوْرَاةَ بِالْعِبْرَانِيَّةِ، وَيُفَسِّرُونَهَا بِالْعَرَبِيَّةِ لِأَهْلِ الْإِسْلَامِ، فَقَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: «لَا تُصَدِّقُوا أَهْلَ الْكِتَابِ وَلَا تُكَذِّبُوهُمْ، وَقُولُوا: {آمَنَّا بِاللهِ وَمَا أُنْزِلَ إِلَيْنَا} [البقرة: 136] الْآيَةَ».
[صحيح] - [رواه البخاري] - [صحيح البخاري: 4485]
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अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है, उन्होंने कहा:
अह्ल-ए-किताब तौरात इबरानी भाषा में पढ़ते और मुसलमानों के लिए अरबी भाषा में उसकी व्याख्या करते थे। इस संदर्भ में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "अह्ल-ए-किताब की न तो पुष्टि करो और न उनको झुठलाओ। बस इतना कहो : {हम अल्लाह पर ईमान लाए और उसपर जो हमारी ओर उतारा गया।}" [सूरा अल-बक़रा : 136]
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 4485]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी उम्मत को उन बातों के धोखे में आने से मना किया है, जो अह्ल-ए-किताब अपनी किताबों के हवाले से नक़ल करते हैं। क्योंकि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़माने में अह्ल-किताब इबरानी ज़बान में, जो कि यहूदियों की ज़बान है, तौरात पढ़ते थे और उसकी व्याख्या अरबी भाषा में करते थे। चुनाेचे इस संबंध में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : अह्ल-ए-किताब की न तो पुष्टि करो और न उनको झुठलाओ। लेकिन यह निर्देश उन मसलों के बारे में है, जिनका सही या गलत होना स्पष्ट न हो। इसका कारण यह है कि अल्लाह ने हमें आदेश दिया है कि हम अपने ऊपर उतरने वाले क़ुरआन तथा अह्ल-ए-किताब पर उतरने वाली किताबों पर ईमान रखें, लेकिन यह जानने का हमारे पास कोई रास्ता नहीं है कि उनकी किताबों का कौन-सा भाग सुरक्षित है और कौन-सा भाग सुरक्षित नहीं है। क्योंकि हमारी शरीयत ने उन किताबों में लिखी हर बात के बारे में यह निर्णय नहीं दिया है कि वह सही है या गलत। इसलिए हम कुछ भी कहने से बचेंगे। न तो पुष्टि करेंगे कि उनके छेड़-छाड़ के अमल में उनके भागीदार बन जाएँ और न झुठलाएँगे कि हो सकता है कि वह सही हो और ऐसे में हम उस चीज़ को झुठलाने वाले बन जाएँ, जिसपर विश्वास रखने का हमें आदेश दिया गया है। अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें यह कहने का आदेश दिया है : "हम अल्लाह पर ईमान लाए और उसपर जो हमारी ओर उतारा गया, और जो इबराहीम और इसमाईल और इसह़ाक़ और याक़ूब तथा उनकी संतान की ओर उतारा गया, और जो मूसा एवं ईसा को दिया गया तथा जो समस्त नबियों को उनके रब की ओर से दिया गया। हम उनमें से किसी एक के बीच अंतर नहीं करते और हम उसी अल्लाह के आज्ञाकारी हैं।" [सूरा अल-बक़रा : 136]