उपश्रेणियाँ

हदीस सूची

जब अबू तालिब की मृत्यु का समय निकट आया, तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उनके पास आए। उस समय आपने उनके पास अब्दुल्लाह बिन अबू उमय्या बिन मुग़ीरा और अबू जह्ल को पाया। आपने कहा : @"ऐ चचा जान, आप 'ला इलाहा इल्लल्लाह' कह दें, मैं इस कलिमा को अल्लाह के पास प्रमाण स्वरूप प्रस्तुत करूँगा।"* यह सुन अबू जह्ल और अब्दुल्लाह बिन अबू उमय्या ने कहा : क्या तुम अब्दुल मुत्तलिब का धर्म छोड़ दोगे? अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बार-बार निवेदन करते रहे और दोनों रोकने के प्रयास में लगे रहे। अंततः अबू तालिब ने यही कहा कि वह अब्दुल मुत्तलिब के धर्म पर कायम हैं। इस तरह 'ला इलाहा इल्लल्लाह' कहने से इनकार कर दिया। वर्णनकर्ता कहते हैं : परन्तु, अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "जब तक मुझे रोका न जाए, मैं आपके लिए क्षमा माँगता रहूँगा।" चुनांचे अल्लाह ने यह आयत उतारी : {مَا كَانَ لِلنَّبِيِّ وَالَّذِينَ آمَنُوا أَنْ يَسْتَغْفِرُوا لِلْمُشْرِكِينَ وَلَوْ كَانُوا أُولِي قربى...} (नबी और ईमान लाने वालों के लिए उचित नहीं कि वे बहुदेववादियों के लिए क्षमा की प्रपर्थना करें, यद्यपि वे नातेदार ही क्यों न होंं) [अत-तौबा : 113] तथा अबू तालिब के बारे में यह आयत उतारी : {إِنَّكَ لا تَهْدِي مَنْ أَحْبَبْتَ وَلَكِنَّ اللَّهَ يَهْدِي مَنْ يَشَاءُ وَهُوَ أَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِينَ} (तुम जिसे चाहो सुपथ पर नहीं ला सकते, किंतु अल्लाह जिसे चाहता है राह दिखाता है, और वह राह पाने वालों को भली-भाँति जानता है।) [अल-क़सस : 56]
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सुन लो, शक्ति से आशय तीरंदाज़ी है। सुन लो, शक्ति से आशय तीरंदाज़ी है। सुन लो, शक्ति से आशय तीरंदाज़ी है।
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"क़यामत उस समय तक नहीं आएगी, जब तक सूरज अपने डूबने के स्थान से न निकले। जब सूरज अपने डूबने के स्थान से निकलेगा और लोग देखेंगे, तो सब लोग ईमान ले आएँगे*। ऐसा उस समय होगा, जब : " किसी प्राणी को उसका ईमान लाभ नहीं देगा, जो पहले ईमान न लाया हो या अपने ईमान की हालत में कोई सत्कर्म न किया हो।" [सूरा अल-अनआम : 158] क़यामत इस तरह आएगी कि दो लोगों ने अपने बीच कपड़े फैला रखे होंगे, न उसकी खरीद-बिक्री कर सकेंगे और न उसे समेट सकेंगे। क़यामत इस तरह आएगी कि आदमी अपनी ऊँट को दूह चुका होगा, लेकिन दूध पी नहीं सकेगा। क़यामत इस तरह आएगी कि आदमी अपने हौज़ को ठीक कर रहा होगा, लेकिन उसका पानी पी नहीं सकेगा। क़यामत इस तरह आएगी कि आदमी निवाला मुँह तक उठा चुका होगा, लेकिन उसे खा नहीं सकेगा।"
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"क़यामत के दिन मौत को एक चितकबरे मेंढे* के रूप में लाया जाएगा। फिर एक आवाज़ देने वाला आवाज़ देगा : ऐ जन्नत वासियो! चुनांचे वे ऊपर नज़र उठाकर देखेंगे। आवाज़ देने वाला कहेगा : क्या तुम इसको पहचानते हो? वे कहेंगे: हाँ। यह मौत है और सब ने उसको देखा है। फिर वह आवाज़ देगा : ऐ जहन्नम वासियो! चुनांचे वह भी अपनी गर्दन उठाकर देखेंगे। फिर वह कहेगा : क्या तुम इसको पहचानते हो? वे कहेंगे : हाँ। सब ने उसे देखा है। फिर उस मेंढे को ज़बह कर दिया जाएगा और आवाज़ देने वाला कहेगा : ऐ जन्नत वासियो! तुम्हें हमेशा यहाँ रहना है, अब किसी को मौत नहीं आएगी । ऐ जहन्नम वासियो! तुम्हें भी यहाँ हमेशा रहना है, अब किसी को मौत नहीं आएगी। फिर आपने यह आयत तिलावत फरमाई : “और (ऐ नबी!) आप उन्हें पछतावे के दिन से डराएँ, जब हर काम का फैसला कर दिया जाएगा, और वे पूरी तरह से ग़फ़लत में हैं और वे ईमान नहीं लाते।" [सूरा मरयम : 39]
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"यहूदी वह लोग हैं, जिनपर अल्लाह का प्रकोप हुआ और ईसाई वह लोग हैं, जो गुमराह हैं।"
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अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह आयत पढ़ी : "(ऐ नबी!) वही है जिसने आप पर यह पुस्तक उतारी, जिसमें से कुछ आयतें मुहकम हैं, वही पुस्तक का मूल हैं, तथा कुछ दूसरी (आयतें) मुतशाबेह हैं। फिर जिनके दिलों में टेढ़ है, तो वे फ़ितने की तलाश में तथा उसके असल आशय की तलाश के उद्देश्य से, सदृश अर्थों वाली आयतों का अनुसरण करते हैं। हालाँकि उनका वास्तविक अर्थ अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता। तथा जो लोग ज्ञान में पक्के हैं, वे कहते हैं हम उसपर ईमान लाए, सब हमारे रब की ओर से है। और शिक्षा वही लोग ग्रहण करते हैं, जो बुद्धि वाले हैं।" [सूरा आल-ए-इमरान : 7] उनका कहना है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "@जब तुम ऐसे लोगों को देखो, जो क़ुरआन की सदृश आयतों का अनुसरण करते हों, तो जान लो कि उन्हीं का नाम अल्लाह ने लिया है। अतः उनसे सावधान रहना*।"
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एक व्यक्ति अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सामने बैठा और बोला : ऐ अल्लाह के रसूल! मेरे कुछ ग़ुलाम हैं। वह मुझसे झूठ बोलते हैं, मेरे साथ विश्वासघात करते हैं और मेरी अवज्ञा करते हैं। जबकि मैं उनको गाली देता हूँ और मारता हूँ। उनके साथ मेरे इस बर्ताव के कारण मेरा हाल क्या होगा? आपने कहा : "@उनके द्वारा की गई तुम से विश्वासघात, अवज्ञा तथा तुमसे झूठ बोलने और तुम्हारे द्वारा उनको दी गई सज़ा का हिसाब होगा*। अगर तुम्हारे द्वारा उनको दी गई सज़ा उनके गुनाहों के बराबर होगी, तो काफ़ी होगी। न तुम्हारे हक़ में जाएगी और न तुम्हारे विरुद्ध। लेकिन अगर तुम्हारे द्वारा उनको दी गई सज़ा उनके गुनाहों से कम होगी, तो तुम्हारे हक़ में जाएगी। जबकि अगर तुम्हारे द्वारा उनको दी गई सज़ा उनके गुनाहों से अधिक होगी, तो उनको दी गई अधिक सज़ा का तुमसे क़िसास लिया जाएगा।" वर्णनकर्ता कहते हैं : इतना सुनने के बाद वह व्यक्ति ज़रा हट के ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। यह देख अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "क्या तुमने अल्लाह की किताब नहीं पढ़ी है, जिसमें लिखा है : "और हम क़यामत के दिन न्याय के तराज़ू रखेंगे। फिर किसी पर कुछ भी अन्याय नहीं किया जाएगा। और अगर किसी का कोइ कर्म राई के एक दाने के बराबर भी होगा, तो हम उसे ले आएँगे। और हम हिसाब लेने वाले काफ़ी हैं।" इसपर उस व्यक्ति ने कहा : अल्लाह की क़सम, ऐ अल्लाह के रसूल! मैं अपने और उनके हक़ में इससे बेहतर कुछ नहीं पाता कि उनको आज़ाद कर दूँ। मैं आपको ग़वाह बनाकर कहता हूँ कि वे सारे आज़ाद हैं।
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कुछ मुश्रिक, जिन्होंने बहुत ज़्यादा हत्याएँ की थीं और बहुत ज़्यादा व्यभिचार किया था, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए और कहने लगे : @आप जो कुछ कह रहे हैं और जिस बात का आह्वान कर रहे हैं, वह अच्छी है। अगर आप हमें बता दें कि हमने जो पाप किए हैं, उनका कोई प्रायश्चित भी है, (तो बेहतर हो)।* चुनांचे इसी परिदृश्य में यह दो आयतें उतरीं : "और जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे पूज्य को नहीं पुकारते, और न उस प्राण को क़त्ल करते हैं, जिसे अल्लाह ने ह़राम ठहराया है परंतु हक़ के साथ और न व्यभिचार करते हैं।" [सूरा अल-फ़ुरक़ान : 68] "(ऐ नबी!) आप मेरे उन बंदों से कह दें, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किए हैं कि तुम अल्लाह की दया से निराश न हो।" [सूरा अल-ज़ुमर : 53]
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अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मक्का विजय के दिन लोगों को संबोधित करते हुए कहा : "@ऐ लोगो! अल्लाह ने तुमसे जाहिलीयत काल के अभिमान एवं बाप-दादाओं पर फ़ख़्र (घमंड) करने की प्रवृत्ति को दूर कर दिया है*। अतः अब लोग दो प्रकार के हैं। एक, नेक, परहेज़गार और अल्लाह के यहाँ सम्मानित एवं दूसरा दुष्ट, अभागा तथा अल्लाह की नज़र में महत्वहीन व्यक्ति। सारे लोग आदम की संतान हैं और आदम को अल्लाह ने मिट्टी से पैदा किया है। उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है : "ऐ मनुष्यो! हमने तुम्हें एक नर और एक मादा से पैदा किया तथा हमने तुम्हें जातियों और क़बीलों में कर दिया, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचान सको। निःसंदेह अल्लाह के निकट तुममें सबसे अधिक सम्मान वाला वह है, जो तुममें सबसे अधिक तक़्वा (धर्मप्रायणता) वाला है। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूरी ख़बर रखने वाला है।" [सूरा अल-हुजुरात : 13]
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ثم لتسألن يومئذ عن النعيم
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जब तुम लोग {अल-ह़म्दु लिल्लाह} पढ़ो, तो {बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम} (शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से, जो बड़ा दयालु और कृपाशील है) पढ़ो। निश्चय यह उम्म-उल-क़ुरआन (क़ुरआन का सार), उम्म-उल-किताब (किताब का सार) और अस-सब-अल-मसानी (बा-रबार दुहराई जाने वाली सात आयतें) है तथा {बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम} उनमें से एक है।
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अली बिन अबू तालिब (रज़ियल्लाहु अंहु) का यह फ़रमान कि मैं पहला व्यक्ति हूँ, जो अत्यंत कृपाशील अल्लाह के सामने झगड़ने के लिए क़यामत के दिन अपने घुटनों के बल बैठेगा।
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उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) मुझे बद्र युद्ध में शरीक होने वाले बड़े-बूढ़े सहाबा की मजलिस में शामिल करते थे। इससे ऐसा लगा कि उनमें से किसी के मन में कुछ नाराज़गी पाई गई।
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जब कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को अपने ऊपर हराम कर ले, तो उसे कुछ नहीं माना जाएगा। वह यह आयत भी पढ़ते थेः {لقد كان لكم في رسول الله أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ} (अर्थात तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में उत्तम आदर्श है।)
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