عن خولة بنت حكيم رضي الله عنها مرفوعًا: «مَن نزَل مَنْزِلًا فقال: أعوذ بكلمات الله التَّامَّات من شرِّ ما خلَق، لم يَضُرَّه شيءٌ حتى يَرْحَلَ مِن مَنْزِله ذلك».
[صحيح] - [رواه مسلم]
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ख़ौला बिंत हकीम (रज़ियल्लाहु अंहा) का वर्णन है कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः जो किसी मंज़िल में उतरते समय कहेः 'मैं अल्लाह की पैदा की हुई चीज़ों की बुराई से उसके संपूर्ण शब्दों की शरण में आता हूँ', उसे कोई चीज़ वह मंज़िल छोड़ने तक नुक़सान नहीं पहुँचा सकती।
सह़ीह़ - इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अपनी उम्मत को यहाँ एक ऐसी दुआ सिखाई है, जिससे वह यात्रा या सैर के दौरान किसी स्थान में उतरते समय हर बुराई से बच सकता है। सिखाया कि इनसान अल्लाह के ऐसे शब्दों की शरण में आजाए, जो शिफ़ा देने वाले, पर्याप्त एवं हर कमी तथा ऐब से सुरक्षित हैं, ताकि जब तक वहाँ रहे, हर कष्टदायक वस्तु से सुरक्षित रहे।

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हदीस का संदेश

  1. अल्लाह की शरण लेना भी इबादत है।
  2. शरण लेने का वैध तरीका यह है आदमी अल्लाह या उसके नामों तथा गुणों की शरण ले।
  3. अल्लाह की वाणी मख़लूक़ नहीं है। क्योंकि अल्लाह ने उसकी शरण लेने की अनुमति दी है और मख़लूक़ की शरण लेना शिर्क है। लिहाज़ा साबित हुआ कि वह मख़लूक़ नहीं है।
  4. इस छोटी-सी दुआ की फ़ज़ीलत
  5. सारी सृष्टि की पेशानियाँ अल्लाह के हाथ में हैं।
  6. इस दुआ की बरकत का बयान।
  7. क़ुरआन की व्यापकता तथा संपूर्णता।
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