عن خَوْلَةَ بِنْتَ حَكِيمٍ السُّلَمِيَّةَ قَالتْ: سَمِعْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ:
«مَنْ نَزَلَ مَنْزِلًا ثُمَّ قَالَ: أَعُوذُ بِكَلِمَاتِ اللهِ التَّامَّاتِ مِنْ شَرِّ مَا خَلَقَ، لَمْ يَضُرَّهُ شَيْءٌ حَتَّى يَرْتَحِلَ مِنْ مَنْزِلِهِ ذَلِكَ».
[صحيح] - [رواه مسلم] - [صحيح مسلم: 2708]
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ख़ौला बिंत हकीम सुलमिया रज़ियल्लाहु अनहा से वर्णित है, उन्होंने कहा : मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कहते हुए सुना है :
"जो किसी स्थान में उतरते समय कहे : 'मैं अल्लाह की पैदा की हुई चीज़ों की बुराई से उसके संपूर्ण शब्दों के द्वारा (उसकी) शरण माँगता हूँ', उसे कोई चीज़ वह स्थान छोड़ने तक नुक़सान नहीं पहुँचा सकती।"
[सह़ीह़] - [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 2708]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी उम्मत को यात्रा या सैर व तफ़रीह के दौरान किसी स्थान में उतरते समय, अल्लाह की शरण लेने का निर्देश दे रहे हैं, जिससे इन्सान हर उस बुराई से सुरक्षित रह सकता है, जिसका उसे डर हो। आपने बताया कि बंदा जब किसी स्थान में उतरते समय हर बुराई वाली सृष्टि की बुराई से अल्लाह के ऐसे शब्दों के द्वारा शरण ले लेता है, जो फ़ज़ीलत, बरकत तथा लाभ के दृष्टिकोण से संपूर्ण हैं और हर ऐब तथा कमी से पाक हैं, तो वहाँ जब तक रुका रहता है, तब तक हर कष्टदायक वस्तु से सुरक्षित रहता है।