عن أبي أيوب رضي الله عنه عن النبي صلى الله عليه وسلم قال: «مَنْ قَالَ: لَا إلَهَ إلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ، وَلَهُ الْحَمْدُ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ عَشْرَ مَرَّاتٍ كَانَ كَمَنْ أَعْتَقَ أَرْبَعَةَ أَنْفُسٍ مِنْ وَلَدِ إسْمَاعِيلَ».
[صحيح] - [متفق عليه]
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अबू अय्यूब (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णित है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः “जिसने दस बार 'ला इलाहा इल्लल्लाहु वह़दहु ला शरीका लहु, लहुल-मुल्कु व लहुल-हम्दु, व हुवा अला कुल्लि शैइन क़दीर' (अर्थात, अल्लाह के सिवा कोई वास्तविक पूज्य नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं है, पूरा राज्य उसी का है और सब प्रशंसा उसी की है और उसके पास हर चीज़ का सामर्थ्य है।) कहा, वह उस व्यक्ति के समान है, जिसने इसमाईल (अलैहिस्सलाम) की संतान में से चार दासों को मुक्त किया।”
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।
यह हदीस इस ज़िक्र की फ़ज़ीलत पर दलालत करती है, क्योंकि इसमें तौहीद का इक़रार है। साथ ही यह कि जो इसके अर्थ को आत्मसात करते हुए और इसके तक़ाज़ों (मांगों) पर अमल करते हुए इसे दस बार कहेगा, उसे इसमाईल बिन इबराहीम अलैहिस्सलात वस्सलाम की नस्ल के चार दासों को मुक्त करने वाले के बराबर सवाब मिलेगा।