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عن أبي هريرة رضي الله عنه
عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فِيمَا يَحْكِي عَنْ رَبِّهِ عَزَّ وَجَلَّ، قَالَ: «أَذْنَبَ عَبْدٌ ذَنْبًا، فَقَالَ: اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي ذَنْبِي، فَقَالَ تَبَارَكَ وَتَعَالَى: أَذْنَبَ عَبْدِي ذَنْبًا، فَعَلِمَ أَنَّ لَهُ رَبًّا يَغْفِرُ الذَّنْبَ، وَيَأْخُذُ بِالذَّنْبِ، ثُمَّ عَادَ فَأَذْنَبَ، فَقَالَ: أَيْ رَبِّ اغْفِرْ لِي ذَنْبِي، فَقَالَ تَبَارَكَ وَتَعَالَى: عَبْدِي أَذْنَبَ ذَنْبًا، فَعَلِمَ أَنَّ لَهُ رَبًّا يَغْفِرُ الذَّنْبَ، وَيَأْخُذُ بِالذَّنْبِ، ثُمَّ عَادَ فَأَذْنَبَ، فَقَالَ: أَيْ رَبِّ اغْفِرْ لِي ذَنْبِي، فَقَالَ تَبَارَكَ وَتَعَالَى: أَذْنَبَ عَبْدِي ذَنْبًا، فَعَلِمَ أَنَّ لَهُ رَبًّا يَغْفِرُ الذَّنْبَ، وَيَأْخُذُ بِالذَّنْبِ، اعْمَلْ مَا شِئْتَ فَقَدْ غَفَرْتُ لَكَ».

[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح مسلم: 2758]
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अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है कि
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने सर्वशक्तिमान एवं महान रब से रिवायत करते हुए कहते हैं : "एक बंदे ने एक गुनाह किया और उसके बाद कहा : ऐ अल्लाह, मुझे मेरे गुनाह क्षमा कर दे! तो बरकत वाले एवं महान अल्लाह ने कहा : मेरे बंदे ने एक गुनाह किया, फिर उसने जाना कि उसका रब गुनाह माफ़ करता है और गुनाह के कारण पकड़ता भी है। फिर उसने दोबारा गुनाह किया और कहा : ऐ मेरे रब, मुझे मेरे गुनाह माफ़ कर दे! तो बरकत वाले एवं महान अल्लाह ने कहा : मेरे बंदे ने गुनाह किया और जाना कि उसका रब गुनाह माफ़ करता है और उसके कारण पकड़ता भी है। मैंने अपने बंदे को माफ़ कर दिया। अब वह जो चाहे, करे।"

[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 2758]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने रब से रिवायत करते हुए कहते हैं कि बंदा जब कोई गुनाह कर बैठता है और उसके बाद कहता है कि ऐ मेरे अल्लाह! मुझे क्षमा कर दे! तो अल्लाह कहता है : मेरे बंदे ने गुनाह किया और उसका विश्वास है कि उसका रब है, जो गुनाह माफ़ करता है या उसका दंड देता है। अतः मैंने उसे माफ़ कर दिया। फिर जब बंदा दोबारा गुनाह करता है और कहता है कि ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे, तो अल्लाह कहता है कि मेरे बंदे ने गुनाह किया और उसका विश्वास है कि उसका रब है, जो गुनाह माफ़ करता है या उसकी सज़ा देता है, अतः मैंने अपने बंदे को माफ़ कर दिया। जब बंदा फिर गुनाह करता है और कहता है कि ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे, तो अल्लाह कहता है कि मेरे बंदे ने गुनाह किया और उसका विश्वास है कि उसका रब है, जो गुनाह माफ़ करता है या उसकी सज़ा देता है, अतः मैंने अपने बंदे को माफ़ कर दिया। अब वह जो चाहे करे, जब तक स्थिति यह हो कि हर बार गुनाह करने के बाद वह फ़ौरन गुनाह को छोड़ दे, शर्मिंदा हो और दोबारा गुनाह न करने का इरादा कर ले, लेकिन नफ़्स के बहकावे में आकर फिर गुनाह कर बैठे। जब तक यह स्थिति बनी रहे, यानी गुनाह करे और तौबा करे, तो मैं उसे माफ़ करता रहूँगा। क्योंकि तौबा पहले किए हुए गुनाहों को ख़त्म कर देती है।

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हदीस का संदेश

  1. अल्लाह का विशाल अनुग्रह कि इन्सान जो भी ग़लती करे और जो भी काम करे, जब अल्लाह की ओर लौटता है और उसके सामने तौबा करता है, तो अल्लाह उसकी तौबा को ग्रहण करता है।
  2. अल्लाह पर ईमान रखने वाला व्यक्ति उसकी क्षमा की आशा रखता है और उसके दंड से डरता है, इसलिए वह गुनाह करते जाने की बजाय जल्दी से तौबा कर लेता है।
  3. सही तौबा की शर्तें : जो गुनाह कर रहा था उसे छोड़ देना, उसपर शर्मिंदा होना और दोबारा उसे न करने का पक्का इरादा करना। अगर तौबा का संबंध बंदे के किसी अधिकार, मसलन माल, इज़्ज़त-आबरू और जान से हो, तो एक चौथी शर्त बढ़ जाती है। वह शर्त है, हक़ वाले को उसका हक़ दे देना या उससे माफ़ी करा लेना।
  4. अल्लाह का ज्ञान रखने का महत्व, जो बंदे को दीनी मसायल का जानकार बनाता है और जिसके नतीजे में बंदा हर बार ग़लती करने के बाद तौबा कर लेता है। वह न तो अल्लाह की दया से निराश होता है और न गुनाह में आगे बढ़ता जाता है।
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