عن عائِشَة رضي الله عنها مرفوعاً: «لا صلاة بِحَضرَة طَعَام، وَلا وهو يُدَافِعُه الأَخبَثَان».
[صحيح] - [رواه مسلم]
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आइशा- रज़ियल्लाहु अन्हा- कहती हैं कि अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमायाः "आदमी उस समय नमाज़ न पढ़े, जब खाना उपस्थित हो। और उस समय भी नहीं, जब तेज़ पेशाब व पाखाना लगा हुआ हो।"
सह़ीह़ - इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

यह हदीस इस बात पर ज़ोर देती है कि नमाज़ की हालत में नमाज़ी का दिल अपने रब के सामने उपस्थित रहना चाहिए और इसके लिए आवश्यक है कि दिल को उन व्यस्तताओं से मुक्त रखा जाए, जो उसके अंदर इतमीनान और विनय पैदा होने नहीं देतीं। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने खाना हाज़िर होने की सूरत में नमाज़ पढ़ने से मना किया है, जिसमें नमाज़ी का दिल अटका रहता है। इसी तरह पेशाब-पाखाना लगे होने की सूरत में भी नमाज़ पढ़ने से रोका है, क्योंकि आदमी उसी को रोकने के चक्कर में लगा रहता है।

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हदीस का संदेश

  1. इस हदीस में पेशाब-पाखाना लगे रहने की सूरत में, यदि वक्त की तंगी न हो, नमाज़ पढ़ने को अच्छा नहीं माना गया है। अगर कोई उस हालत में नमाज़ पढ़ ले तो उसकी नमाज़ सही होगी और दोबारा नमाज़ पढ़ने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन उसे इस हदीस की वजह से असंपूर्ण माना जाएगा। लेकिन अगर कोई इस हाल में नमाज़ पढ़ना शुरू करता है कि उसे पेशाब या पाखाना नहीं लगा होता है, बल्कि नमाज़ के दौरान में उसे उनमें से किसी की ज़रूरत आ पड़ती है, तो उसकी नमाज़ बिना किसी कराहत के सही हो जाएगी, यदि पेशाब अथवा पाखाने की यह ज़रूरत उसे नमाज़ पूरी करने से न रोके।
  2. नमाज़ में दिल को अल्लाह के सामने उपस्थित रखना और सम्पूर्ण विनय, दोनों अनिवार्य हैं।
  3. नमाज़ी के लिए अनिवार्य है कि वह नमाज़ के दौरान खुद को हर उस चीज़ से दूर रखे, जो उसका ध्यान इधर-उधर बटा सकती हो।
  4. पेशाब और पाखाना की ज़रूरत आ पड़ने की सूरत में, इस शर्त पर जुमा और जमात छोड़ी जा सकती है कि कोई नमाजों के वक्त में उन ज़रूरतों से फारिग होने को अपनी आदत न बनाए रखे।
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