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عَنْ أَنَسٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ:
أَنَّ رَجُلًا سَأَلَ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ عَنِ السَّاعَةِ، فَقَالَ: مَتَى السَّاعَةُ؟ قَالَ: «وَمَاذَا أَعْدَدْتَ لَهَا». قَالَ: لاَ شَيْءَ، إِلَّا أَنِّي أُحِبُّ اللَّهَ وَرَسُولَهُ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَقَالَ: «أَنْتَ مَعَ مَنْ أَحْبَبْتَ». قَالَ أَنَسٌ: فَمَا فَرِحْنَا بِشَيْءٍ، فَرِحْنَا بِقَوْلِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: «أَنْتَ مَعَ مَنْ أَحْبَبْتَ» قَالَ أَنَسٌ: فَأَنَا أُحِبُّ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ وَأَبَا بَكْرٍ، وَعُمَرَ، وَأَرْجُو أَنْ أَكُونَ مَعَهُمْ بِحُبِّي إِيَّاهُمْ، وَإِنْ لَمْ أَعْمَلْ بِمِثْلِ أَعْمَالِهِمْ.

[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 3688]
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अनस रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है, वह कहते हैं :
एक व्यक्ति ने अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से क़यामत के बारे में पूछा। उसने कहा : क़यामत कब आएगी? आपने कहा : "तुमने उसके लिए क्या तैयारी की है?" उसने कहा : तैयारी तो वैसे कुछ नहीं की है, लेकिन इतना ज़रूर है कि मैं अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मोहब्बत रखता हूँ। इसपर आपने कहा : "तुम्हें उसके साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त होगा, जिससे तुम्हें मोहब्बत है।" अनस रज़ियल्लाहु अनहु कहते हैं : हम किसी चीज़ से उतना खुश नहीं हुए, जितना अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस कथन से हुए कि तुम्हें उसके साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त होगा, जिससे तुम्हें मोहब्बत है। अनस रज़ियल्लाहु अनहु कहते हैं : मैं अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तथा अबू बक्र एवं उमर रज़ियल्लाहु अनहुमा से मोहब्बत रखता हूँ और आशा करता हूँ कि उनसे इस मोहब्बत के कारण मुझे उनके साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त होगा, यद्यपि मैं उनके जैसा अमल न भी कर सकूँ।

[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 3688]

व्याख्या

रेगिस्तान में रहने वाले एक देहाती व्यक्ति ने अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से क़यामत के दिन के समय के बारे में प्रश्न किया,
तो आपने उत्तर देने के बजाय उसी से पूछ लिया कि तुमने उसकी तैयारी के तौर पर कौन-कौन से अच्छे काम किए हैं?
उसने उत्तर दिया : मैंने उसकी तैयारी के तौर पर कुछ बड़ा तो नहीं किया है, लेकिन इतना ज़रूर है कि मैं अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मोहब्बत रखता हूँ। उन्होंने किसी दूसरी हार्दिक, शारीरिक एवं आर्थिक इबादत का ज़िक्र नहीं किया। क्योंकि यह सारी इबादतें उसी मोहब्बत की शाखाएँ हैं और उसी के नतीजे में सामने आती हैं। दूसरी बात यह है कि सच्ची मोहब्बत इन्सान को अच्छा कार्य करने की प्रेरणा देती है।
यह सुन अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उससे कहा : निश्चित रूप से तुम जन्नत में उसके साथ रहोगे, जिससे तुम्हें मोहब्बत है।
इस सुसमाचार से अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा को बड़ी खुशी हुई।
फिर अनस रज़ियल्लाहु अनहु ने बताया कि वह अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तथा अबू बक्र एवं उमर रज़ियल्लाहु अनहुमा से मोहब्बत रखते हैं और आशा करते हैं कि जन्नत में उनके साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त होगा, चाहे उनका अपना अमल उन लोगों के जैसा न भी रहे।

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हदीस का संदेश

  1. अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम प्रश्न करने वाले को जवाब देने में हिकमत से काम लेते थे। यही कारण है कि यहाँ सवाल करने वाले का मार्गदर्शन एक ऐसी चीज़ की ओर कर दी, जो उसके लिए महत्वपूर्ण थी और जो उसे मुक्ति दिला सकती है। यानी आख़िरत के दिन की तैयारी के लिए सत्कर्म करना।
  2. क़्यामत कब होगी, इस बात की जानकारी अल्लाह ने बंदों को नहीं दी है, ताकि इन्सान अल्लाह से मिलने के लिए हमेशा तैयार रहे और पूरी तैयारी रखे।
  3. अल्लाह, उसके रसूल और सदाचारी मोमिनों से मुहब्बत रखने की फ़ज़ीलत बताना और मुश्रिकों से मुहब्बत रखने से सावधान करना।
  4. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का "तुम्हें उसका साथ नसीब होगा, जिससे तुम्हें मुहब्बत है" कहने का मतलब यह नहीं है कि दोनों को समान दर्जे के स्थान प्राप्त होंगे, बल्कि मतलब यह है कि दोनों जन्नत में इस तरह रहेंगे कि एक-दूसरे को देख सकेंगे, यद्यपि जगह दूर ही क्यों न हो।
  5. एक मुसलमान को इस बात का निर्देश दिया गया है कि वह उस चीज़ पर ध्यान दे, जो उसके लिए ज़्यादा अच्छा और लाभकारी हो। वह ऐसी चीज़ों के बारे में प्रश्न न करे, जो उसके लिए लाभकारी न हों।
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