عن عمر بن الخطاب رضي الله عنه مرفوعاً: «إنما الأعمال بِالنيَّات، وإنما لكل امرئ ما نوى، فمن كانت هجرتُه إلى الله ورسوله فهجرتُه إلى الله ورسوله، ومن كانت هجرتُه لدنيا يصيبها أو امرأةٍ ينكِحها فهجرته إلى ما هاجر إليه».
[صحيح] - [متفق عليه]
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उमर बिन ख़त्ताब- रज़ियल्लाहु अन्हु- अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करते हैं कि आपने फ़रमायाः सभी कार्यों का आधार नीयतों पर है और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी नीयत के अनुरूप ही परिणाम मिलेगा। अतः, जिसकी हिजरत दुनिया प्राप्त करने या किसी स्त्री से शादी रचाने की हो, उसकी हिजरत उसी काम के लिए है, जिसके लिए उसने हिजरत की।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।
यह एक बड़ी महत्वर्ण हदीस है। कुछ उलेमा ने इसे एक तिहाई इस्लाम शुमार किया है। इसमें बताया गया है कि एक मोमिन को प्रतिफल उसकी नीयत और उसकी दुरुस्ती के अनुसार मिलता है। जिसका कर्म विशुद्ध रूप से अल्लाह के लिए होगा, उसका कर्म ग्रहणयोग्य होगा, चाहे वह कम ही क्यों न हो। बस शर्त यह है कि वह सुन्नत के अनुरूप हो। इसके विपरीत जिसका कर्म विशुद्ध रूप से अल्लाह के लिए न होकर लोगों को दिखाने के लिए होगा, उसका कर्म ग्रहणयोग्य नहीं होगा, चाहे वह कितना भी बड़ा और अधिक क्यों न हो। हर वह अमल जिसका उद्देश्य अल्लाह की प्रसन्नता की प्राप्ति के सिवा कुछ और हो, चाहे वह कोई स्त्री हो, धन हो, पद हो या कोई और सांसारिक वस्तु, उस अलम को करने वाले के मुँह पर मार दिया जाएगा और उसे अल्लाह ग्रहण नहीं करेगा। क्योंकि किसी भी नेकी के काम के ग्रहणयोग्य होने के लिए उसके अंदर दो शर्तों का पाया जाना ज़रूरी है : वह अमल विशुद्ध रूप से अल्लाह के लिए किया गया हो और अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के बताए हुए तरीक़े के मुताबिक किया गया हो।