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عن عُبَادَةَ بن الصَّامتِ رضي الله عنه قال:
بَايَعْنَا رسولَ اللهِ صلى الله عليه وسلم على السَّمْعِ وَالطَّاعَةِ فِي الْعُسْرِ وَالْيُسْرِ، وَالْمَنْشَطِ وَالْمَكْرَهِ، وعلى أَثَرَةٍ علينا، وعلى أَلَّا نُنَازِعَ الْأَمْرَ أهلَه، وعلى أَنْ نَقُولَ بِالْحَقِّ أينما كُنَّا، لا نَخَافُ في الله لَوْمَةَ لَائِمٍ.

[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح مسلم: 1709]
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उबादा बिन सामित रज़ियल्लाहु अनहु से रिवायत है, वह कहते हैं :
हमने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कठिनाई और आसानी में, चुस्ती और सुस्ती में और हमारे ऊपर तरजीह दिए जाने की अवस्था में भी सुनेंगे और अनुसरण करेंगे। और इस बात पर बैअत की कि हम शासकों से शासन के मामले में नहीं झगड़ेंगे और जहाँ कहीं भी होंगे, हक़ बात कहेंगे और इस विषय में किसी निंदा करने वाले की निंदा की परवाह नहीं करेंगे।

सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

इस हदीस में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने साथियों से इस बात की प्रतिज्ञा ली कि वे आसान तथा कठिन हालत और धनवान् तथा निर्धन होने की अवस्था में, शासकों के आदेश उनको पसंद हों या न हों, यहाँ तक कि शासक सार्वजनिक धन एवं पदों आदि के मामले में उनपर किसी और को तरजीह ही क्यों न देते हों, उनकी बात मानकर चलेंगे और उनके विरुद्ध बग़ावत नहीं करेंगे। क्योंकि उनसे लड़ने के नेतीजे में जो फ़ितना व फ़साद मचेगा, वह उनके अत्याचार के नतीजे में होने वाले फ़ितना व फ़साद से अधिक बड़ा है। आपने उनसे इस बात की भी प्रतिज्ञा ली कि जहाँ भी रहेंगे अल्लाह के लिए सत्य ही कहेंगे और किसी की निंदा की परवाह नहीं करेंगे।

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हदीस का संदेश

  1. शासकों की सुनने और उनका अनुसरण का परिणाम यह होगा कि मुसलमान एकजुट रहेंगे और उनके बीच फूट नहीं पड़ेगी।
  2. शासकों की बातों को, जब तक वे अल्लाह की नाफ़रमानी का आदेश न दें, सुनना और मानना ज़रूरी है। आसान परिस्थिति में भी और कठिन परिस्थिति में भी। पसंद हो तब भी और नापसंद हो तब भी तथा किसी और को तरजीह दी जाए, तब भी।
  3. हम जहाँ भी रहें, किसी की निंदा की परवाह किए बिना सत्य कहना वाजिब है।
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