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عَنْ أُمِّ سَلَمَةَ أُمِّ المُؤمنين رضي الله عنها: أَنَّ رَسُولَ اللهِ صلى الله عليه وسلم قَالَ:
«سَتَكُونُ أُمَرَاءُ فَتَعْرِفُونَ وَتُنْكِرُونَ، فَمَنْ عَرَفَ بَرِئَ، وَمَنْ أَنْكَرَ سَلِمَ، وَلَكِنْ مَنْ رَضِيَ وَتَابَعَ» قَالُوا: أَفَلَا نُقَاتِلُهُمْ؟ قَالَ: «لَا، مَا صَلَّوْا».

[صحيح] - [رواه مسلم] - [صحيح مسلم: 1854]
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मुसलमानों की माता उम्म-ए-सलमा रज़ियल्लाहु अनहा का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"तुमपर ऐसे शासक नियुक्त हो जाएँगे, जिनके कुछ काम तुम्हें अच्छे लगेंगे और कुछ बुरे। ऐसे में जो (उनके बुरे कामों को) बुरा जानेंगे, वह बरी हो जाएँगे और जो खंडन करेंगे, वह सुरक्षित रहेंगे। परन्तु जो उनको ठीक जानेंगे और शासकों की हाँ में हाँ मिलाएँगे (वह विनाश के शिकार होंगे)।" सहाबा ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! क्या हम उनसे युद्ध न करें? फ़रमाया : "नहीं! जब तक वे नमाज़ पढ़ते रहें।"

[सह़ीह़] - [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 1854]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बताया है कि हमारे शासक ऐसे लोग बन जाएँगे, जिनके कुछ काम शरीयत के अनुसार होने के कारण हमको सही लगेंगे और कुछ शरीयत विरोधी होने के कारण हमकों ग़लत लगेंगे। ऐसे में जो उनके ग़लत कामों को अपने दिल से बुरा जानेगा और इस स्थिति में नहीं होगा कि उनका खंडन कर सके, तो वह गुनाह एवं मुनाफ़िकत से बरी माने जाएगा। इसी तरह जिसके पास हाथ से रोकने या ज़बान से खंडन करने की शक्ति होगी और वह इस शक्ति का उपयोग करेगा, वह गुनाह तथा उसमें शरीक होने से सुरक्षित रहेगा। इसके विपरीत जो उनके इन बुरे कामों को अच्छा जानेगा और उनके पद्चिह्नों पर चलेगा, वह उनकी ही तरह विनाश का शिकार हो जाएगा।
फिर सहाबा ने अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछा किया क्या हम इस तरह के शासकों से युद्ध न करें, तो आपने उनको इससे मना किया और फ़रमाया कि नहीं, ऐसा उस समय तक न करना, जब तक वे नमाज़ क़ायम करते रहें।

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हदीस का संदेश

  1. मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अल्लाह के नबी होने का एक प्रमाण यह है कि आपने आने वाले समय में घटने वाली कुछ घटनाओं की भविष्यवाणी की और वह घटनाएँ उसी तरह सामने भी आ गईं, जिस तरह आपने भविष्यवाणी की थी।
  2. ग़लत काम के प्रति सहमति व्यक्त करना और उसमें शरीक होना जायज़ नहीं, बल्कि उसका खंडन ज़रूरी है।
  3. जब शासक शरीयत विरोधी काम करने लगें, तो इन कामों में उनका अनुसरण जायज़ नहीं है।
  4. मुस्लिम शासकों के विरुद्ध बग़ावत करना जायज़ नहीं है। क्योंकि इसके नतीजे में फ़साद बरपा होगा, रक्तपात होगा और शांति भंग होगी। इसलिए नाफ़रमान शासकों के निंदनीय व्यवहार को सहना और उनके दुर्व्यवहार पर सब्र करना इससे आसान है।
  5. नमाज़ बड़े महत्व वाली चीज़ है। नमाज़ ही कुफ़्र एवं इस्लाम के बीच अंतर करने वाली चीज़ है।
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