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عَنْ عَبْدِ اللهِ بْنِ مَسْعُودٍ رضي الله عنه أَنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:
«مَا مِنْ نَبِيٍّ بَعَثَهُ اللهُ فِي أُمَّةٍ قَبْلِي إِلَّا كَانَ لَهُ مِنْ أُمَّتِهِ حَوَارِيُّونَ، وَأَصْحَابٌ يَأْخُذُونَ بِسُنَّتِهِ وَيَقْتَدُونَ بِأَمْرِهِ، ثُمَّ إِنَّهَا تَخْلُفُ مِنْ بَعْدِهِمْ خُلُوفٌ يَقُولُونَ مَا لَا يَفْعَلُونَ، وَيَفْعَلُونَ مَا لَا يُؤْمَرُونَ، فَمَنْ جَاهَدَهُمْ بِيَدِهِ فَهُوَ مُؤْمِنٌ، وَمَنْ جَاهَدَهُمْ بِلِسَانِهِ فَهُوَ مُؤْمِنٌ، وَمَنْ جَاهَدَهُمْ بِقَلْبِهِ فَهُوَ مُؤْمِنٌ، وَلَيْسَ وَرَاءَ ذَلِكَ مِنَ الْإِيمَانِ حَبَّةُ خَرْدَلٍ».

[صحيح] - [رواه مسلم] - [صحيح مسلم: 50]
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अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"मुझसे पहले अल्लाह ने जितने नबी भेजे, उनके लिए उनकी उम्मत में कुछ सहयोगी एवं साथी हुआ करते थे, जो उनकी सुन्नत पर अमल और उनके आदेश का पालन करते थे। फिर उनके बाद ऐसे अयोग्य लोग पैदा हो गए, जो ऐसी बातें कहते, जो वे करते नहीं थे और करते वह काम थे, जिनका उन्हें आदेश नहीं दिया जाता था। अतः जिसने उनसे अपने हाथ से जिहाद किया वह मोमिन है, जिसने उनसे अपने हृदय से जिहाद किया वह मोमिन है और जिसने उनसे अपनी ज़ुबान से जिहाद किया, वह मोमिन है। और इसके अतिरिक्त राई के दाने के बराबर भी ईमान नहीं है।"

[सह़ीह़] - [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 50]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यहाँ बताया है कि अल्लाह ने आपसे पहले किसी भी उम्मत के अंदर जो भी रसूल भेजा, उसके साथ खड़े होने के लिए कुछ प्रिय मित्र, सहयोगी और निष्ठावान मुजाहिद हुआ करते थे, जो उसके उत्तराधिकारी होने के सचमुच हक़दार थे, उसकी सुन्नत का अनुसरण करते और उसके आदेशों का पालन करते थे। लेकिन उन सदाचारी पूर्वजों के बाद ऐसे निकम्मे लोग आ जाते थे, जो कहते वह थे, जिसपर खुद अमल नहीं करते थे और करते वह थे, जिसका आदेश उनको दिया नहीं गया था। अतः जिसने ऐसे लोगों से अपने हाथ से जिहाद किया, वह मोमिन है। जिसने उनसे अपनी ज़बान से जिहाद किया, वह मोमिन है। जिसने उनसे अपने दिल से जिहाद किया, वह मोमिन है।इसके परे एक राई के दाने के बराबर भी ईमान नहीं है।

हदीस का संदेश

  1. अपने कार्य तथा वक्तव्य द्वारा शरीयत विरोधी कार्य करने वालों से जिहाद करने की प्रेरणा।
  2. ग़लत को दिल से ग़लत न जानना ईमान की कमज़ोरी या ख़त्म होने का प्रमाण है।
  3. अल्लाह अपने नबियों के लिए ऐसे लोग उपलब्ध कर देता है, जो उनका संदेश उनके बाद वालों तक पहुँचा देते हैं।
  4. जिसे मुक्ति चाहिए, वह नबियों के बताए हुए मार्ग पर चले। क्योंकि उनके मार्ग को छोड़कर हर मार्ग गुमराही एवं विनाश का मार्ग है।
  5. नबी सल्लल्लााहु अलैहि व सल्लम और आपके सहाबा का दौर जितना दूर होता जाएगा, उतना ही लोग सुन्नतों को छोड़ते चले जाएँगे, इच्छाओं एवं आकांक्षाओं के पीछे भागने लगेंगे और दीन के नाम पर नई-नई चीज़ें आविष्कार करते जाएँगे।
  6. जिहाद के विभिन्न स्तरों का बयान। दरअसल अगर हालात को बदलने की शक्ति हो, तो जिहाद हाथ से होना चाहिए। यह कार्य दरअसल शासन-प्रशासन का है। वक्तव्य द्वारा जिहाद से मुराद सच बोलना और उसका आह्वान करना है। जबकि दिल से जिहाद करने से मुराद ग़लत को ग़लत समझना, उसे नापसंद करना और उससे असंतुष्ट रहना है।
  7. भलाई का आदेश देना और बुराई रोकना ज़रूरी है।
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