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عن أبي هريرة رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم:
«لَا تَجْعَلُوا بُيُوتَكُمْ قُبُورًا، وَلَا تَجْعَلُوا قَبْرِي عِيدًا، وَصَلُّوا عَلَيَّ؛ فَإِنَّ صَلَاتَكُمْ تَبْلُغُنِي حَيْثُ كُنْتُمْ».

[حسن] - [رواه أبو داود] - [سنن أبي داود: 2042]
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अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"अपने घरों को क़ब्रिस्तान न बनाओ और न मेरी क़ब्र को मेला स्थल बनाओ। हाँ, मुझपर दुरूद भेजते रहो, क्योंकि तुम जहाँ भी रहो, तुम्हारा दुरूद मुझे पहुँच जाएगा।"

[ह़सन] - [इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है।] - [سنن أبي داود - 2042]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने घरों को नमाज़ से खाली रखने से मना किया है कि वे क़ब्रिस्तान की तरह हो जाएँ, जहाँ नमाज़ नहीं पढ़ी जाती। इसी तरह बार-बार आपकी क़ब्र की ज़ियारत करने और नियमित रूप से वहाँ एकत्र होने से मना किया, क्योंकि इससे शिर्क का द्वार खुलता है। आपने अपने ऊपर धरती के किसी भी भाग से दरूद भेजने का आअदेश दिया है, क्योंकि दूर तथा निकट हर जगह से दरूद समान रूप से आप तक पहुँच जाती है। इसलिए बार-बार आपकी क़ब्र के पास आने की ज़रूरत नहीं है।

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हदीस का संदेश

  1. घरों को अल्लाह की इबादत से खाली छोड़ने की मनाही।
  2. अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़ब्र की ज़ियारत के लिए सफ़र करने की मनाही, क्योंकि आपने अपने ऊपर दरूद भेजने का आदेश दिया है और बताया है कि उसे आप तक पहुँचा दिया जाता है। सफ़र मस्जिद-ए-नबवी के इरादे से और उसमें नमाज़ पढ़ने के लिए किया जा सकता है।
  3. अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़ब्र की ज़ियारत को जश्न के रूप में लेना यानी एक खास तरीक़े से एक खास समय में बार-बार ज़ियारत करना, हराम है। यही हाल प्रत्येक क़ब्र की ज़ियारत का है।
  4. अल्लाह के पास नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का सम्मान कि हर दौर तथा हर स्थान में आप पर दरूद को शरीयत सम्मत घोषित किया।
  5. चूँकि क़ब्रों के पास नमाज़ न पढ़ने की बात सहाबा के यहाँ स्थापित थी, इसलिए अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बताया कि घरों को क़ब्रिस्तान की तरह न बनाओ कि वहाँ नमाज़ पढ़ना छोड़ दो।
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