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عَنْ عَبْدِ الرَّحْمَنِ بْنِ سَمُرَةَ رضي الله عنه قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:
«لَا تَحْلِفُوا بِالطَّوَاغِي، وَلَا بِآبَائِكُمْ».

[صحيح] - [رواه مسلم] - [صحيح مسلم: 1648]
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अब्दुर रहमान बिन समुरा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"बुतों तथा अपने बाप- दादाओं की क़सम मत खाओ।"

[सह़ीह़] - [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 1648]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम "तवाग़ी" की क़सम खाने से मना फ़रमा रहे हैं। "तवाग़ी" बहुवचन है, "ताग़ियह" हा। मुराद ऐसे बुत हैं, जिनकी पूजा अल्लाह को छोड़कर मुश्रिक लोग किया करते थे। यही बुत उनकी सरकशी एवं अविश्वास का सबब थे। इसी प्रकार आप पूर्वजों की क़सम खाने से मना कर रहे हैं। क्योंकि इस्लाम-पूर्व युग में अरबों में अपने पिता की क़सम खाकर गर्व और सम्मान की भावना रखने का प्रचलन था।

हदीस का संदेश

  1. क़सम बस अल्लाह और उसके नामों एवं गुणों की खाना जायज़ है।
  2. अल्लाह के स्थान पर पूजे वाले जाने बुतों, अपने पूर्वजों, सरगनों, मूर्तियों और इस प्रकार की अन्य असत्य चीज़ों की क़सम खाना जायज़ नहीं है।
  3. ग़ैरुल्लाह की क़सम खाना वैसे तो छोटा शिर्क है, लेकिन दिल में उसकी अल्लाह के जैसा सम्मान बैठ जाए या उसे इबादत का हक़दार समझ लिया जाए, तो यह बड़ा शिर्क हो जाता है।
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