عن عقبة بن عامر رضي الله عنه مرفوعاً: «إن أحَقَّ الشُّروط أن تُوفُوا به: ما استحللتم به الفروج».
[صحيح] - [متفق عليه]
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उक़बा बिन आमिर (रज़ियल्लाहु अंहु) का वर्णन है कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः वह शर्त, जो इस बात की सबसे ज़्यादा हक़दार है कि उसे पूरा किया जाए, यह वह शर्त है, जिसके द्वारा तुम गुप्तांग को हलाल करते हो।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

स्त्री और पुरुष जब निकाह का इरादा करते हैं, तो उनके कुछ उद्देश्य और मक़सद होते हैं और कभी-कभी वे अपने साथी के सामने उन शर्तों को रख भी देते हैं, ताकि निकाह के बाद उनका पालन हो सके और उन्हें पूरा करने का मुतालबा भी हो सके। इन्हें 'निकाह के समय रखी गई शर्तें' कहा जाता है। यह शर्तें, दरअसल निकाह की उन शर्तों से अलग हैं, जिनके बिना निकाह सही नहीं हो सकता। इन शर्तों को निभाने की ताकीद की गई है और इनका पूरा करना ज़रूरी है; क्योंकि इनके ज़रिए आदमी शर्मगाह को हलाल करके लाभ उठाता है।

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हदीस का संदेश

  1. उन शर्तों को पूरा करने की अनिवार्यता, जो पति-पत्नी में से कोई एक अपने जीवन साथी के सामने रखे। जैसे स्त्री की ओर से अधिक महर लेने या किसी निर्धारित स्थान पर निवास प्राप्त करने की शर्त या पति की ओर से बकारत (कुंवारि) एवं नसब की शर्त।
  2. शर्तों को पूरा करने के संबंध में इस हदीस में आई हुई व्यापकता को, [ किसी स्त्री के लिए हलाल नहीं है कि अपनी बहन की तलाक़ का मुतालबा करे ] जैसी अन्य हदीसों के ज़रिए सीमित किया जाएगा।
  3. निकाह की शर्तों को पूरा करना अन्य शर्तों को पूरा करने की तुलना में अधिक ज़रूरी है, क्योंकि इनके ज़रिए शर्मगाह को हलाल किया जाता है।
  4. पति-पत्नी में से हर एक के लिए दूसरे पर जो चीजें लाज़िम होती हैं, जैसे स्त्री के लिए नफ़क़ा (खर्चा) तथा आनंदित होने एवं रात गुज़ारने का हक़। और पुरुष के लिए आनंदित होने का अधिकार, तो इनका कोई परिमाण निर्धारित नहीं होता, बल्कि इस सिलसिले में प्रचलन को आधार माना जाएगा।
  5. निकाह की शर्तें दो प्रकार की होती हैं : क- मान्य शर्तें : ऐसी शर्तें जो निकाह के अनुबंध से न टकराती हों और पति-पत्नी में से जिसने भी शर्त रखी हो उसका उद्देश्य सही हो। ख- अमान्य शर्तें : ऐसी शर्तें जो निकाह के अनुबंध से टकराती हों। यह और इस तरह की शर्तों के संबंध में मापदंड अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का यह फ़रमान है : "मुसलमानों को अपनी शर्तों पर क़ायम रहना होगा, सिवाय उस शर्त के जो किसी हलाल को हराम करती हो या किसी हराम को हलाल करती हो।" यहाँ इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि शर्त निकाह से पहले रखी गई हो कि निकाह के साथ।
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