عَنِ ابْنِ أَبِي أَوْفَى رضي الله عنه قَالَ:
كَانَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ إِذَا رَفَعَ ظَهْرَهُ مِنَ الرُّكُوعِ قَالَ: «سَمِعَ اللهُ لِمَنْ حَمِدَهُ، اللَّهُمَّ رَبَّنَا لَكَ الْحَمْدُ، مِلْءَ السَّمَاوَاتِ وَمِلْءَ الْأَرْضِ وَمِلْءَ مَا شِئْتَ مِنْ شَيْءٍ بَعْدُ».
[صحيح] - [رواه مسلم] - [صحيح مسلم: 476]
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अब्दुल्लाह बिन अबू औफ़ा रज़ियल्लाहु अनहु कहते हैं :
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब रुकू से पीठ उठाते, तो यह दुआ पढ़ते : "سَمِعَ اللهُ لِمَنْ حَمِدَهُ، اللَّهُمَّ رَبَّنَا لَكَ الْحَمْدُ، مِلْءَ السَّمَاوَاتِ وَمِلْءَ الْأَرْضِ وَمِلْءَ مَا شِئْتَ مِنْ شَيْءٍ بَعْدُ" (अल्लाह ने उसकी सुन ली, जिसने उसकी प्रशंसा की। ऐ अल्लाह! हमारे रब! तेरी ही प्रशंसा है आकाशों भर, ज़मीन भर और उनके बाद भी तू जो चाहे, उसके भर।)
[सह़ीह़] - [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 476]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब नमाज़ में रुकू से सर उठाते, तो फ़रमाते : ""سمع الله لِمَن حمده"" यानी जिसने अल्लाह की प्रशंसा की, अल्लाह उसकी प्रशंसा को ग्रहण करता है और उसे सवाब देता है। फिर इन शब्दों में अल्लाह की प्रशंसा करते : "" اللَّهُمَّ رَبَّنَا لَكَ الْحَمْدُ، مِلْءَ السَّمَاوَاتِ وَمِلْءَ الْأَرْضِ وَمِلْءَ مَا شِئْتَ مِنْ شَيْءٍ بَعْدُ "" यानी ऐसी प्रशंसा जो आकाशों, ज़मीनों और उनके बीच के स्थान को भर दे और उन तमाम चीज़ों को भर दे, जो अल्लाह चाहे।