उपश्रेणियाँ

हदीस सूची

अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अनहुमा प्रत्येक नमाज़ का सलाम फेरने के बाद कहा करते थे : " لا إله إلا الله وحده لا شريكَ له، له الملك وله الحمد وهو على كل شيءٍ قديرٌ، لا حولَ ولا قوةَ إلا بالله، لا إله إلا الله، ولا نعبد إلا إيَّاه، له النِّعمة وله الفضل، وله الثَّناء الحَسَن، لا إله إلا الله مخلصين له الدِّين ولو كَرِه الكافرون" (अल्लाह के अतिरिक्ति कोई सच्चा पूज्य नहीं है। वह अकेला है। उसका कोई साझी नहीं है। उसी की बादशाहत है और उसी की सभी प्रकार की उच्च कोटी की प्रशंसा है और वह हर चीज़ में सक्षम है। अल्लाह के प्रदान किए हुए सुयोग के बिना न किसी के पास गुनाह से बचने की क्षमता है और न नेकी का काम करने का सामर्थ्य। अल्लाह के अतिरिक्त कोई सच्चा उपास्य नहीं है। हम केवल उसी की उपासना करते हैं। उसी की सब नेमतें हैं और उसी का सब पर उपकार है। उसी की समस्त अच्छी प्रशंसाएं हैं। अल्लाह के अतिरिक्त कोई सच्चा पूज्य नहीं है। हम उसी के लिए धर्म को खालिस व शुद्ध करते हैं, चाहे यह बात काफिरों को नागवार लगती हो।) उन्होंने आगे कहा : @अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम प्रत्येक नमाज़ के बाद इन्हीं शब्दों के द्वारा तहलील (अल्लाह का गुणगान) करते थे।
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अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब नमाज़ समाप्त करते, तो तीन बार अल्लाह से क्षमा माँगते और यह दुआ पढ़ते : "@ऐ अल्लाह! तू ही शांति वाला है और तेरी ओर से ही शांति है। तू बरकत वाला है ऐ महानता और सम्मान वाले*!" वलीद कहते हैं : मैंने औज़ाई से कहा : क्षमा कैसे माँगी जाए? उन्होंने उत्तर दिया : तुम बस इतना कहो : मैं अल्लाह से क्षमा माँगता हूँ, मैं अल्लाह से क्षमा माँगता हूँ।
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अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इन शब्दों द्वारा दुआ करते थे : "@ऐ अल्लाह! मैं तेरी शरण माँगता हूँ क़ब्र की यातना से, जहन्नम की यातना से, जीवन और मृत्यु के फ़ितने से और मसीह-ए-दज्जाल के फ़ितने से*।" और मुस्लिम की एक रिवायत में है : "जब तुममें से कोई तशह्हुद पढ़ चुके, तो चार चीज़ों से अल्लाह की शरण माँगे : जहन्नम की यातना से, क़ब्र की यातना से, जीवन और मृत्यु के फ़ितने से और मसीह-ए-दज्जाल के फ़ितने से।"
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ऐ अल्लाह, मैं तेरे क्रोध से तेरी प्रसन्नता की शरण माँगता हूँ, तेरी सज़ा से तेरे क्षमादान की शरण माँगता हूँ और तुझसे तेरी शरण में आता हूँ। मैं तेरी प्रशंसा तेरे अधिकार अनुसार नहीं कर सकता। तू वैसा ही है, जैसा तूने अपने बारे में कहा है।
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अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) रुकू तथा सजदे में अधिकतर यह दुआ पढ़ते थेः "سُبْحَانَكَ اللَّهُمَّ ربنا وبحمدك، اللَّهُمَّ اغْفِرْ لي" (अर्थात ऐ अल्लाह, ऐ हमारे रब, तू अपनी प्रशंसा के साथ पाक है। ऐ अल्लाह, तू मुझे माफ कर दे।)
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"प्रत्येक फ़र्ज नमाज़ के पश्चात कही जाने वाली तसबीहों को कहने वाले -या उनका पालन करने वाले- नाकाम नहीं होंगे। अर्थात 33 बार सुबहानल्लाह, 33 बार अल-हम्दु लिल्लाह और 34 बार अल्लाहु अकबर।"
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لا إله إلا الله وحده لا شريك له، له الملك وله الحمد وهو على كل شيء قدير
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"जिसने प्रत्येक फर्ज़ नमाज़ के पश्चात आयतुल कुर्सी पढ़ी, उसको जन्नत में जाने से मौत के सिवा कोई चीज़ रोक नहीं सकती।"
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दोनों ने सच कहा है। इन लोगों को ऐसा अज़ाब दिया जाता है कि सारे चौपाए उसे सुनते हैं।
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: سمع الله لمن حمده، اللهم ربنا لك الحمد، ملء السماوات وملء الأرض وملء ما شئت من شيء بعد
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अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद यह दुआ पढ़ा करते थे* : "لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ، اللَّهُمَّ لَا مَانِعَ لِمَا أَعْطَيْتَ، وَلَا مُعْطِيَ لِمَا مَنَعْتَ، وَلَا يَنْفَعُ ذَا الْجَدِّ مِنْكَ الْجَدُّ" (अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है। वह अकेला है। उसका कोई साझेदार नहीं है। उसी का राज्य तथा उसी की प्रशंसा है। वह हर काम का सामर्थ्य रखता है। ऐ अल्लाह! तू जो कुछ दे, उसे कोई रोकने वाला नहीं और जो रोक ले, उसे कोई देने वाला नहीं। किसी धनवान का धन तेरे विरुद्ध उसके कुछ काम नहीं आ सकता।)
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ऐ अल्लाह! तू पवित्र एवं पाक है तथा फ़रिश्तों एवं जिबरील का रब है।
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ऐ अल्लाह! मैंने जो पहले किया और जो बाद में किया, जो छिपाकर किया तथा जो दिखाकर किया और जिसमें मैंने अति की और जिसको तू मुझसे भी बेहतर जानने वाला है, उन सभी गुनाहों को माफ़ कर दे। तू ही आदेशपालन का सामर्थ्य देकर आगे करता है और तू ही अवज्ञा के कारण पीछे करता है। तेरे सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है।
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मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ एक रात तहज्जुद की नमाज़ पढ़ी। आप खड़े हुए और सूरा बक़रा पढ़ी। जब रहमत की आयत से गुज़रते, तो रुककर (अल्लाह से उसकी दया) माँगते और जब अज़ाब की आयत से गुज़रते, तो रुककर (उससे अल्लाह की) शरण माँगते।
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ऐ अल्लाह, ऐ जिबराईल, मीकाईल तथा इसराफ़ील के रब! आकाश तथा धरती को बनाने वाले और हाज़िर और ग़ायब की ख़बर रखने वाले! तू ही अपने बंदों के मतभेदों का निर्णय करने वाला है, मुझे अपनी अनुमति से जिसके प्रति मतभेद हो गया है, उसमें सत्य की राह दिखा। निश्चय तू जिसे चाहता है उसे सही रास्ता दिखाता है।
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अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब रात में उठते, तो तकबीर (अल्लाहु अकबर) कहते, फिर यह दुआ पढ़ते : "سبحانك اللهم وبحمدك وتبارك اسمك، وتعالى جدك، ولا إله غيرك" (ऐ अल्लाह, तू पवित्र है अपनी प्रशंसा समेत, तेरा नाम बड़ी बरकत वाला है, तेरी शान बड़ी बुलंद है और तेरे सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं।)
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जहाँ तक इस आदमी की बात है, तो इसने अपना हाथ भलाई से भर लिया है।
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नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की नमाज़, और आप का रुकू, तथा जब आप रुकू से सिर उठाते (उस के बाद का समय), और आप का सज्दे तथा दो सज्दों के मध्य बैठने का समय, सभी लग-भग बराबर होते।
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अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- हमें तशह्हुद सिखाते थे, जिस प्रकार हमें क़ुरआन की सूरा सिखाते थे।
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