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عن كعب بن عجرة رضي الله عنه عن النبي صلى الله عليه وسلم قال: «مُعَقِّباتٌ لا يخيب قائلهنَّ -أو فاعلهنَّ- دُبُرَ كل صلاة مكتوبة: ثلاث وثلاثون تسبيحة، وثلاث وثلاثون تحميدة، وأربع وثلاثون تكبيرة».
[صحيح] - [رواه مسلم]
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कअब बिन उजरा (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैं कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः प्रत्येक फ़र्ज नमाज़ के पश्चात कही जाने वाली तसबीहों को कहने वाले नाकाम नहीं होंगे, अर्थात 33 बार सुबहानल्लाह, 33 बार अल्ह्मदु लिल्लाह और 34 बार अल्लाहु अकबर।
सह़ीह़ - इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

इस हदीस से मालूम होता है कि पाँच वक़्त की नमाज़ों के बाद इन अज़कार को कहना चाहिए। इसमें हिकमत यह छिपी हुई है कि फ़र्ज़ नमाज़ों के समय द्वार खोले जाते हैं और बंदों के कर्म उठाए जाते हैं, अतः इन क्षणों में सवाब मिलने की आशा अधिक होती है और सवाब भी अधिक मिलता है।

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