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عَنْ عَبْدِ الرَّحْمَنِ بْنِ أَبِي لَيْلَى قَالَ: لَقِيَنِي كَعْبُ بْنُ عُجْرَةَ، فَقَالَ: أَلاَ أُهْدِي لَكَ هَدِيَّةً؟
إِنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ خَرَجَ عَلَيْنَا، فَقُلْنَا: يَا رَسُولَ اللَّهِ، قَدْ عَلِمْنَا كَيْفَ نُسَلِّمُ عَلَيْكَ، فَكَيْفَ نُصَلِّي عَلَيْكَ؟ قَالَ: «فَقُولُوا: اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ، كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ، اللَّهُمَّ بَارِكْ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ، كَمَا بَارَكْتَ عَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ».

[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 6357]
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अब्दुर रहमान बिन अबू लैला कहते हैं कि काब बिन उजरा मुझसे मिले और कहने लगे : क्या मैं तुम्हें कोई तोहफ़ा न दूँ?
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमारे पास आए, तो हमने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, हम यह तो जान गए हैं कि हम आप पर सलाम कैसे भेजें, लेकिन हम आप पर दरूद कैसे भेजें? तो आपने फ़रमाया : "कहो : «اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ، كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ، اللَّهُمَّ بَارِكْ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ، كَمَا بَارَكْتَ عَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ» (ऐ अल्लाह! मुहम्मद और मुहम्मद के परिवार-परिजन पर रहमत नाज़िल फरमा, जैसे तूने इबराहीम के परिवार-परिजन पर रहमत नाज़िल की थी। बेशक तू प्रशंसा के योग्य और महिमावान है। ऐ अल्लाह! मुहम्मद और मुहम्मद के परिवार-परिजन पर बरकत नाज़िल फरमा, जैसे तूने इबराहीम के परिवार-परिजन पर बरकत नाज़िल की थी। बेशक तू प्रशंसा के योग्य और महिमावान है।)

[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 6357]

व्याख्या

सहाबा रज़ियल्लाहु अनहुम को जब पता हो गया कि "अत-तहिय्यात" में "السلام عليك أيها النبي ورحمة الله وبركاته..." कहकर अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर सलाम भेजा जाएगा, तो आपसे पूछा कि आप पर दरूद कैसे भेजा जाए? जवाब में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनको आप पर दरूद भेजने के शब्द बता दिए, जो इस प्रकार हैं : "اللهم صلِّ على محمدٍ وعلى آل محمد" (अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मद) यानी ऐ अल्लाह! मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, आपके दीन का पालन करने वालों और आपके ईमान वाले रिश्तेदारों की प्रशंसा निकटवर्तीय फ़रिश्तों के सामने फ़रमा। "كما صلَّيتَ على آل إبراهيم" (कमा सल्लैता अला आलि इब्राहीम) जिस प्रकार तु ने इबराहीम अलैहिस्सलाम की आल को सम्मान दिया है, उसी प्रकार मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भी यह सम्मान प्रदान कर। इबराहीम की आल से तात्पर्य; खुद इब्राहीम, तथा इसमाईल, इसहाक़, उनकी संतान-संतति और उनके मोमिन अनुसरणकारी हैं। "إنك حميد مجيد" (इन्नका हमीदुन मजीद) यानी तो अपनी हस्ती, गुणों एवं कार्यों में प्रशंसित तथा बड़ा महान, अधिकार वाला और दानशील है। "اللهم بارك على محمدٍ وعلى آل محمد كما باركتَ على آل إبراهيم" (अल्लाहुम्मा बारिक अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मद, कमा बारकता अला आलि इब्राहीम) यानी आपको बड़ी भलाई एवं सम्मान प्रदान कर, उसे बढ़ाता जा और निरंतर रूप से जारी रख।

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हदीस का संदेश

  1. सलफ़ एक-दूसरे को इल्मी मसायल का भेंट दिया करते थे।
  2. नमाज़ के अंतिम तशह्हुद में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दरूद भेजना वाजिब (अनिवार्य) है।
  3. अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने सहाबा को आपपर दरूद एवं सलाम भेजने की शिक्षा दी है।
  4. दरूद के ये शब्दावली अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दरूद भेजने के सबसे संपूर्ण शब्दावली हैं।
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