عن أبي صرمة رضي الله عنه مرفوعاً: «من ضارَّ مسلما ضارَّه الله، ومن شاقَّ مسلما شقَّ الله عليه».
[حسن] - [رواه أبوداود والترمذي وابن ماجه وأحمد]
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अबू सिरमा (रज़ियल्लाहु अंहु) नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करते हैंः "जो किसी मुसलमान का नुक़सान करे, अल्लाह उसका नुक़सान करेगा और जो किसी मुसलमान को कठिनाई में डाले, अल्लाह उसे कठिनाई में डालेगा।"
ह़सन - इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है ।

व्याख्या

इस हदीस में किसी मुसलमान को कष्ट देने, उसकी हानि करने और उसे किसी कठिनाई में डालने के हराम होने का प्रमाण है। चाहे यह सब उसके शरीर के साथ किया जाए, उसके परिवार के साथ किया जाए, धन-संपत्ति के साथ किया जाए या संतान-संततति के साथ किया जाए। साथ ही यह कि जिसने किसी मुसलमान का नुक़सान किया और उसे कठिनाई में डाला, अल्लाह उसे उसी प्रकार का प्रतिफल प्रदान करेगा। याद रहे कि यह हानि किसी मुसलमान के किसी हित को नष्ट करने की सूरत में भी हो सकती है या उसका कोई नुक़सान करने की सूरत में भी हो सकता है। चाहे किसी भी रूप में हो। इसमें मामलात में धोखा देना, दोषों को छुपाना और अपने भाई के निकाह के पैग़ाम पर पैग़ाम देना आदि शामिल हैं।

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हदीस का संदेश

  1. किसी मुसलमान को किसी भी तरह कष्ट देने का हराम होना।
  2. अल्लाह इनसान को उसी तरह का प्रतिफल दिया करता है, जिस तरह का उसका कर्म रहा होता है।
  3. अल्लाह अपने मुसलमान बंदों की रक्षा करता है और वह स्वयं उनका बचाव करता है।
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