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عَنْ ‌وَرَّادٍ كَاتِبِ الْمُغِيرَةِ بْنِ شُعْبَةَ قَالَ: أَمْلَى عَلَيَّ الْمُغِيرَةُ بْنُ شُعْبَةَ فِي كِتَابٍ إِلَى مُعَاوِيَةَ:
أَنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ يَقُولُ فِي دُبُرِ كُلِّ صَلَاةٍ مَكْتُوبَةٍ: «لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ، اللَّهُمَّ لَا مَانِعَ لِمَا أَعْطَيْتَ، وَلَا مُعْطِيَ لِمَا مَنَعْتَ، وَلَا يَنْفَعُ ذَا الْجَدِّ مِنْكَ الْجَدُّ».

[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 844]
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मुग़ीरा बिन शोबा के मुंशी वर्राद से रिवायत है, वह कहते हैं : मुग़ीरा बिन शोबा ने मुझसे मुआविया के नाम भेजे गए एक पत्र में लिखवाया :
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद यह दुआ पढ़ा करते थे : "لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ، اللَّهُمَّ لَا مَانِعَ لِمَا أَعْطَيْتَ، وَلَا مُعْطِيَ لِمَا مَنَعْتَ، وَلَا يَنْفَعُ ذَا الْجَدِّ مِنْكَ الْجَدُّ" (अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है। वह अकेला है। उसका कोई साझेदार नहीं है। उसी का राज्य तथा उसी की प्रशंसा है। वह हर काम का सामर्थ्य रखता है। ऐ अल्लाह! तू जो कुछ दे, उसे कोई रोकने वाला नहीं और जो रोक ले, उसे कोई देने वाला नहीं। किसी धनवान का धन तेरे विरुद्ध उसके कुछ काम नहीं आ सकता।)

सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद यह दुआ पढ़ा करते थे* : "لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ، اللَّهُمَّ لَا مَانِعَ لِمَا أَعْطَيْتَ، وَلَا مُعْطِيَ لِمَا مَنَعْتَ، وَلَا يَنْفَعُ ذَا الْجَدِّ مِنْكَ الْجَدُّ" (अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है। वह अकेला है। उसका कोई साझेदार नहीं है। उसी का राज्य तथा उसी की प्रशंसा है। वह हर काम का सामर्थ्य रखता है। ऐ अल्लाह! तू जो कुछ दे, उसे कोई रोकने वाला नहीं और जो रोक ले, उसे कोई देने वाला नहीं। किसी धनवान का धन तेरे विरुद्ध उसके कुछ काम नहीं आ सकता।)
यानी मैं कलिमा-ए-तौहीद ला इलाहा इल्लल्लाह का इक़रार एवं एतराफ़ करता हूँ। मैं सच्ची इबादत को अल्लाह के लिए सिद्ध करता हूँ और किसी दूसरे के लिए उसे सिद्ध करने का खंडन करता हूँ। क्योंकि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है। मैं इस बात का इक़रार करता हूँ कि वास्तविक एवं संपूर्ण राज्य अल्लाह का है और आकाशों एवं धरती वालों की सारी प्रशंसा का हक़दार केवल अल्लाह है। क्योंकि वही हर चीज़ पर सक्षम है। वह किसी को कुछ दे या किसी से कुछ रोक ले, तो कोई उसके निर्णय को टाल नहीं सकता। उसके यहाँ किसी धनवान व्यक्ति का धन उसके कुछ काम नहीं आ सकता। उसके काम आ सकता है, तो उसका सत्कर्म।

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हदीस का संदेश

  1. एकेश्वरवाद एवं अल्लाह की प्रशंसा पर आधारित इस ज़िक्र को नमाज़ों के बाद पढ़ना मुसतहब है।
  2. सुन्नत के पालन एवं उसे फैलाने के प्रति तत्परता।
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