عن حُذَيْفَةَ رضي الله عنه:
أَنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ يَقُولُ بَيْنَ السَّجْدَتَيْنِ: «رَبِّ اغْفِرْ لِي، رَبِّ اغْفِرْ لِي».

[صحيح] - [رواه أبو داود والنسائي وابن ماجه وأحمد]
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हुज़ैफ़ा रज़ियल्लाहु अनहु से रिवायत है कि
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दो सजदों के बीच यह दुआ पढ़ा करते थे : "رَبِّ اغْفِرْ لِي، رَبِّ اغْفِرْ لِي" (ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे। ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे।

सह़ीह़ - इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है।

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब दो सजदों के बीच बैठते, तो इस दुआ को पढ़ते और बार-बार दोहराते : "رَبِّ اغْفِرْ لِي، رَبِّ اغْفِرْ لِي" (ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे। ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे।)
"رَبِّ اغْفِرْ لِي" इसके द्वारा बंदा अपने रब से इस बात का आग्रह करता है कि उसके गुनाह मिटा दे और उसकी कमियों पर पर्दा डाल दे।

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हदीस का संदेश

  1. फ़र्ज़ तथा नफ़ल नमाज़ में दो सजदों के बीच इस दुआ को पढ़ना है।
  2. "رَبِّ اغْفِرْ لِي" को एक से अधिक बार पढ़ना मुसतहब और एक बार पढ़ना वाजिब है।
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