عن جرير بن عبد الله رضي الله عنه مرفوعاً: «مَنْ لا يَرْحَمِ النَّاسَ لا يَرْحَمْهُ اللهُ».
[صحيح] - [متفق عليه]
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जरीर बिन अब्दुल्लाह (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "जो लोगों पर दया नहीं करता, उसपर अल्लाह भी दया नहीं करता।"
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

जो व्यक्ति लोगों पर दया नहीं करता, सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह उसपर दया नहीं करता। याद रहे कि यहाँ लोगों से मुराद ऐसे लोग हैं, जो दया के पात्र हैं। जैसे ईमान वाले, ज़िम्मी लोग और इन जैसे दूसरे लोग। रही बात ऐसे काफ़िरों की जिनसे युद्ध जारी हो, तो उनपर दया नहीं की जाएगी, बल्कि उनका वध किया जाएगा। क्योंकि अल्लाह तआला ने नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- और उनके साथियों के बारे में कहा है : "वे काफ़िरों के लिए कड़े और आपस में बड़े दयालु हैं।" [सूरा अल-फ़त्ह : 29]

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हदीस का संदेश

  1. अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने विशेष रूप से लोगों का ज़िक्र, उन्हें विशेष महत्व देने के उद्देश्य से किया है, वरना सारी सृष्टियों के साथ दयापूर्ण व्यवहार अपेक्षित है।
  2. दया बहुत बड़ी व्यवहारिक संपदा है और इस्लाम ने मानव हृदय के अंदर उसे बसाने का पूरा प्रयास किया है।
  3. लोगों के अंदर परस्पर दया-भाव अल्लाह का उनपर दया करने का सबब है।
  4. अल्लाह की रहमत को सिद्ध करना। यह पवित्र अल्लाह की एक वास्तविक विशेषता है, जो अपने ज़ाहिरी अर्थ पर अल्लाह के प्रताप के अनुसार है।
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