عن أبي هريرة رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم : «من يُرِدِ الله به خيرا يُصِبْ مِنه».
[صحيح] - [رواه البخاري]
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अबू हुरैरा- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः जिसके साथ अल्लाह तआला भलाई का इरादा करता है, उसे मुसीबतों में डालकर आज़माता है।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।

व्याख्या

जब अल्लाह अपने बदों के साथ भलाई का इरादा करता है, तो उनको उनकी जान, माल और संतान में आज़माता है, ताकि इसके द्वारा उनके गुनाहों को मिटा सके और उनका पद ऊँचा कर सके। जब कोई समझ-बूझ का मालिक व्यक्ति आज़माइश के परिणाम पर सोच-विचार करता है, तो पाता है कि आज़माइश दुनिया एवं आख़िरत में उसके लिए अच्छी ही है। दुनिया में अच्छी इसलिए है कि उसके बहाने बंदे को अल्लाह का शरण लेकर दुआ करने, गिड़गिड़ाने और फ़रियाद करने का अवसर मिलता है। और आख़िरत में अच्छी इसलिए है कि उससे गुनाह माफ़ होते हैं और पद ऊँचा होता है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : "तथा हम अवश्य कुछ भय, भूख तथा धनों और प्राणों तथा खाद्य पदार्थों की कमी से तुम्हारी पीरक्षा करेंगे, और धैर्यवानों को शुभसूचना सुना दो।" लेकिन इस हदीस के व्यापक अर्थ को अन्य हदीसों के द्वारा सीमित कर दिया गया है, जिनसे पता चलता है कि इस हदीस का अर्थ है : जिसके साथ अल्लाह भलाई का इरादा करता है, वह धैर्य से काम लेता है और नेकी की उम्मीद रखता है। अतः अल्लाह उसे मुसीबत में डालकर आज़माता है। लेकिन अगर वह धैर्य न रखे, तो मामला अलग है। क्योंकि कई बार इनसान बहुत-सी मुसीबतों में पड़ता है और उसके अंदर कोई भलाई नहीं होती और उसके साथ अल्लाह भलाई का इरादा भी नहीं रखता। जैसे कि काफ़िर लोग बहुत-सी मुसीबतों के शिकार होते हैं और इसके साथ ही अपने कुफ़्र पर स्थिर रहते हैं और उसी अवस्था में मर जाते हैं। इस तरह के लोगों के बारे में हम पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं कि अल्लाह ने उनके साथ भलाई का इरादा नहीं किया हुआ होता है।

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हदीस का संदेश

  1. मोमिन को धर्म एवं धन से संबंधित तरह-तरह की परीक्षाओं से गुज़रना पड़ता है।
  2. मुसलमान के लिए बड़ी सुसमाचार, क्योंकि हर मुसलमान किसी न किसी कष्ट का सामना करता ही है।
  3. आज़माइश कभी-कभी बंदे औरअल्लाह के बीच प्रेम की निशानी हुआ करती है, जिसके ज़रिए अल्लाह उस बंदे का पद प्रतिष्ठा बढ़ाता है और उसके गुनाहों को मिटाता है।
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