عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:
«مَا يَزَالُ البَلاَءُ بِالمُؤْمِنِ وَالمُؤْمِنَةِ فِي نَفْسِهِ وَوَلَدِهِ وَمَالِهِ حَتَّى يَلْقَى اللَّهَ وَمَا عَلَيْهِ خَطِيئَةٌ».
[حسن] - [رواه الترمذي وأحمد] - [سنن الترمذي: 2399]
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अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
''मोमिन पुरुष एवं मोमिन स्त्री के साथ परीक्षाएँ सदा लगी रहती हैं; उसकी जान, उसकी संतान और उसके माल में। ताकि वह अल्लाह से मिले और उसपर कोई गुनाह न हो।''
[ह़सन] - [رواه الترمذي وأحمد] - [سنن الترمذي - 2399]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि परीक्षाएँ कभी मोमिन पुरुष एवं मोमिन स्त्री का साथ नहीं छोड़तीं। परीक्षा कभी उसकी जान से जुड़ी हुई होती है, जैसे तबीयत खराब हो गई शरीर ठीक नहीं रहा। कभी बाल-बच्चों से जुड़ी हुई होती है, जैसे कोई बीमार हो गया, किसी मृत्यु हो गई, कोई नाफ़रमान निकल गया वग़ैरह वग़ैरह। कभी धन से जुड़ी हुई होती है, जैसे निर्धनता का सामना करना पड़ा, व्यवसाय बैठ गया, चोरी हो गई, मंदी शुरू हो गई और रोज़ी में तंगी का सामना होने लगा। फिर इन परीक्षाओं के नतीजे में अल्लाह उसके तमाम गुनाहों को मिटा देता है और अंत में जब वह अल्लाह से मिलता है, तो अपने किए हुए तमाम गुनाहों से पाक-साफ़ हो चुका होता है।