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عن أبي هريرة رضي الله عنه قال:
لَعَنَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ الرَّاشِيَ وَالْمُرْتَشِيَ فِي الْحُكْمِ.

[صحيح] - [رواه الترمذي وأحمد] - [سنن الترمذي: 1336]
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अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है, वह कहते हैं :
"अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल- ने किसी फैसले के लिए रिश्वत लेने वाले तथा देने वाले दोनों के ऊपर लानत भेजी है।"

सह़ीह़ - इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है।

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रिश्वत देने और लेने वाले के हक़ में अल्लाह की रहमत से धुतकारे और दूर किए जाने की बद-दुआ की है।
इसके दायरे में न्यायाधीशों को दिया जाने वाला वह घूस भी शामिल है, जो उनसे ग़लत तरीक़े से काम करवाने के लिए उनको दिया जाता है।

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हदीस का संदेश

  1. रिश्वत देना, लेना, इसके लेने-देने में मध्यस्थ की भूमिका निभाना और इसमें मदद करना हराम है। क्योंकि यह ग़लत कार्य में सहयोग करन है।
  2. रिश्वत देना और लेना कबीरा गुनाह है, क्योंकि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रिश्वत देने तथा लेने वाले पर लानत की है।
  3. न्याय तथा प्रशासन से संबंधित मामलों में रिश्वत लेना और देना अधिक बड़ा अपराध एवं पाप है। क्योंकि यह अत्याचार तथा अल्लाह की उतारी हुई शरीयत से हटकर निर्णय देना है।
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