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عن أنس رضي الله عنه قال: قال النبي صلى الله عليه وسلم:
«لَا يُؤْمِنُ أَحَدُكُمْ حَتَّى أَكُونَ أَحَبَّ إِلَيْهِ مِنْ وَالِدِهِ وَوَلَدِهِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ».

[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 15]
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अनस रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है, उन्होंने कहा : अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"तुममें से कोई उस समय तक मोमिन नहीं हो सकता, जब तक मैं उसके निकट, उसके पिता, उसकी संतान और तमाम लोगों से अधिक प्यारा न हो जाऊँ।"

[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 15]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि कोई मुसलमान संपूर्ण ईमान वाला उसी समय हो सकता है, जब वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के प्रेम को अपनी माता, पिता, बेटा, बेटी और अन्य सभी लोगों के प्रेम से आगे रखे। यह प्रेम बंदे से चाहता है कि वह उसके आदेशों का पालन करे, उसके पक्ष में खड़ा हो और उसकी अवज्ञा से दूर रहे।

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हदीस का संदेश

  1. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रेम का अनिवार्य होना और उसे सारी सृष्टि के प्रेम से आगे रखना।
  2. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से संपूर्ण प्रेम की एक निशानी यह है कि आदमी आपकी सुन्नत के पक्ष में खड़ा हो और इसके लिए जान एवं माल खर्च करे।
  3. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रेम का तक़ाज़ा यह है कि आपके आदेशों का पालन किया जाए, आपकी बताई हुई बातों की पुष्टि की जाए, आपकी मना की हुई चीज़ों से दूर रहा जाए, आपका अनुसरण किया जाए और बिदअतों से अपने आपको बचाकर रखा जाए।
  4. अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अधिकार सभी लोगों के अधिकारों से बड़ा है। क्योंकि आप ही इस्लाम के मार्ग की प्राप्ति, जहन्नम से मुक्ति और जन्नत में प्रवेश का माध्यम हैं।
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