عَنْ أَبِي سَعِيدٍ الْخُدْرِيِّ وَعَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رضي الله عنهما عَنِ النَّبِيِّ صلى الله عليه وسلم قَالَ:
«مَا يُصِيبُ الْمُسْلِمَ مِنْ نَصَبٍ وَلَا وَصَبٍ وَلَا هَمٍّ وَلَا حُزْنٍ وَلَا أَذًى وَلَا غَمٍّ حَتَّى الشَّوْكَةِ يُشَاكُهَا إِلَّا كَفَّرَ اللهُ بِهَا مِنْ خَطَايَاهُ».
[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 5641]
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अबू सईद ख़ुदरी तथा अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहुमा का वर्णन है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"मुसलमान को जो भी रोग, थकान, दुख, गम, कष्ट और विपत्ति पहुँचती है, यहाँ तक कि एक काँटा भी चुभता है, तो उसके ज़रिए अल्लाह उसके गुनाहों को मिटा देता है।"
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 5641]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि मुसलमान को जो भी बीमारियाँ, ग़म, दुःख, परेशानियाँ, मुसीबतें, कठिनाइयाँ, भय और आर्थिक विपत्तियाँ आती हैं, यहाँ तक कि उसे एक काँटा भी चुभता है, जो उसके लिए कष्टकारक होता है, तो यह सारी चीज़ें उसके लिए गुनाहों का कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) बन जाती हैं।