عَنْ حُذَيْفَةَ رضي الله عنه أَنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:
«لَا تَقُولُوا: مَا شَاءَ اللهُ وَشَاءَ فُلَانٌ، وَلَكِنْ قُولُوا: مَا شَاءَ اللهُ ثُمَّ شَاءَ فُلَانٌ».
[صحيح بمجموع طرقه] - [رواه أبو داود والنسائي في الكبرى وأحمد] - [السنن الكبرى للنسائي: 10755]
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हुज़ैफ़ा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
'जो अल्लाह चाहे एवं अमुक चाहे' ना कहो, बल्कि 'जो अल्लाह चाहे फिर अमुक चाहे' कहो।
सह़ीह़ - इसे नसाई ने रिवायत किया है।
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस बात से मना किया है कि कोई बात-चीत करते समय "जो अल्लाह चाहे और अमुक चाहे" कहे। या इसी तरह कोई "जो अल्लाह और अमुक चाहे" कहे। क्योंकि अल्लाह की चाहत और उसकी इच्छा मुतलक़ (निरपेक्ष) है और इसमें उसका कोई शरीक नहीं है। जबकि यहाँ "और" शब्द का प्रयोग यह बताता है कि कोई अल्लाह के साथ शरीक है और दोनों बराबर हैं। इसलिए इन्सान को "जो अल्लाह चाहे, फिर जो अमुक चाहे" कहना चाहिए। इस तरह "फिर" शब्द द्वारा बंदे की चाहत अल्लाह की चाहत के अधीन हो जाएगी। जबकि "और" शब्द में यह बात नहीं है।