عن جابر رضي الله عنه:
أَنَّ رَجُلًا سَأَلَ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَقَالَ: أَرَأَيْتَ إِذَا صَلَّيْتُ الصَّلَوَاتِ الْمَكْتُوبَاتِ، وَصُمْتُ رَمَضَانَ، وَأَحْلَلْتُ الْحَلَالَ، وَحَرَّمْتُ الْحَرَامَ، وَلَمْ أَزِدْ عَلَى ذَلِكَ شَيْئًا، أَأَدْخُلُ الْجَنَّةَ؟ قَالَ: «نَعَمْ»، قَالَ: وَاللهِ لَا أَزِيدُ عَلَى ذَلِكَ شَيْئًا.
[صحيح] - [رواه مسلم] - [صحيح مسلم: 15]
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जाबिर रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है कि :
एक व्यक्ति ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रश्न करते हुए कहा : इस बारे में आपका क्या कहना है कि अगर मैं पाँच वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़ें पढ़ूँ, रमज़ान महीने के रोज़े रखूँ तथा हलाल को हलाल एवं हराम को हराम मानकर चलूँ और इससे अधिक कुछ न करूँ, तो क्या मैं जन्नत में प्रवेश कर सकूँगा? आपने उत्तर दिया : "हाँ।" इसपर उसने कहा : अल्लाह की क़सम, मैं इससे ज़्यादा कुछ नहीं करूँगा।
सह़ीह़ - इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।
इस हदीस में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि जिसने पाँच वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़ें पढ़ीं तथा नफ़ल नमाज़ें नहीं पढ़ीं, रमज़ान के रोज़े रखे और नफ़ल रोज़े नहीं रखे, हलाल को हलाल माना और उसपर अमल किया तथा हराम को हराम माना और उससे दूर रहा, वह जन्नत में प्रवेश करेगा।