عَنِ الْبَرَاءِ رضي الله عنه:
عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنَّهُ قَالَ فِي الْأَنْصَارِ: «لَا يُحِبُّهُمْ إِلَّا مُؤْمِنٌ، وَلَا يُبْغِضُهُمْ إِلَّا مُنَافِقٌ، مَنْ أَحَبَّهُمْ أَحَبَّهُ اللهُ وَمَنْ أَبْغَضَهُمْ أَبْغَضَهُ اللهُ».
[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح مسلم: 75]
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बरा रज़ियल्लाहु अनहु से रिवायत है कि :
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अंसार के बारे में फ़रमाया : "उनसे वही प्रेम करेगा, जो मोमिन होगा और उनसे वही द्वेष रखेगा, जो मुनाफ़िक़ होगा। जो उनसे प्रेम करेगा, अल्लाह उससे प्रेम करेगा और जो उनसे द्वेष रखेगा, अल्लाह उससे द्वेष रखेगा।"
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 75]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बताया है कि मदीने में रहने वाले अंसार लोगों से प्रेम करना ईमान की संपूर्णता की निशानी है। ऐसा इसलिए कि अंसारी इस्लाम और अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहयोग में आगे रहे हैं, मुसलमानों को शरण दी है और अल्लाह के मार्ग में अपना धन एवं जान खर्च किया है। इसी तरह अंसार से द्वेष रखना निफ़ाक़ की निशानी है। फिर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बताया है कि जो अंसार से मोहब्बत रखेगा, अल्लाह उससे मोहब्बत रखेगा और जो अंसार से द्वेष रखेगा, अल्लाह उससे द्वेष रखेगा।