عن البراء بن عازب رضي الله عنهما أنَّ النبيَّ صلى الله عليه وسلم قال في الأَنصَار: «لاَ يُحِبُّهُم إِلاَّ مُؤمِن، وَلاَ يُبْغِضُهُم إِلاَّ مُنَافِق، مَنْ أَحَبَّهُم أَحَبَّهُ الله، وَمَنْ أَبْغَضَهُم أَبْغَضَه اللَّه».
[صحيح] - [متفق عليه]
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बरा बिन आज़िब (रज़ियल्लाहु अंहुमा) का वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अंसार के बारे में फ़रमायाः "उनसे वही प्रेम करेगा, जो मोमिन होगा और उनसे वही द्वेष रखेगा, जो मुनाफ़िक़ होगे। जो उनसे प्रेम करेंगे, अल्लाह उनसे प्रेम करेगा और जो उनसे द्वेष रखेेंगे, अल्लाह उनसे द्वेष रखेगा।"
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

बरा बिन आज़िब -रज़ियल्लाहु अनहुमा- ने बताया है कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अंसार से प्रेम रखने की प्रेरणा दी है और उनके द्वारा की गई इस्लाम तथा मुसलमानों की सेवा को देखते हुए उनसे प्रेम को ईमान की निशानी घोषित किया है। ऐसा हो भी क्यों न, उन्होंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की सेवा में बढ़-चढ़कर भाग लिया, इस्लाम के सहयोग में अग्रणीय भूमिका निभाई, उसे स्थापित करने की भरपूर कोशिश की, घर-बार छोड़ मदीना आने वाले मुसलमानों को शरण दी, सभी युद्धों में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई, अल्लाह के नबी -सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम- से प्रेम रखा और अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने भी उनसे प्रेम रखा, आपके सामने अपने धन तथा प्राण न्योछावर कर दिए, और इस्लाम के प्रेम में सारे लोगों से दुश्मनी मोल ली, तथा युद्ध किया। यही कारण है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि उनसे द्वेष रखने की कल्पना केवल उसी व्यक्ति से की जा सकती है, जो अल्लाह पर तथा आख़िरत के दिन पर विश्वास न रखता हो और अपने दिल में निफ़ाक़ छुपाए रखता हो।

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