عن أبي ذر الغفاري رضي الله عنه مرفوعاً: «لا تَحْقِرَنَّ من المعروف شيئا، ولو أن تَلْقَى أخاك بوجه طَلْق».
[صحيح] - [رواه مسلم]
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अबूज़र गिफ़ारी (रज़ियल्लाहु अंहु) नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करते हुए कहते हैंः "किसी भी नेकी के काम को हरगिज़ कमतर न जानो, चाहे इतना ही क्यों न हो कि तुम अपने भाई से हँसते हुए मिलो।"
सह़ीह़ - इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

यह हदीस किसी से मुस्कुराकर मिलने के मुसतहब होने तथा इस बात का प्रमाण है कि यह भी एक नेकी का काम है, जिसका मुसलमान को शौक़ रखना चाहिए और उसे तुच्छ नहीं जानना चाहिए, क्योंकि इससे मुसलमान भाई से प्रेम पैदा होता है और यह उसे प्रसन्न होने का अवसर प्रदान करता है।

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हदीस का संदेश

  1. मुसलमानों के बीच आपसी प्रेम और मोहब्बत और एक-दूसरे से हँसकर मिलने का मुतालबा।
  2. इस शरीयत की संपूर्णता तथा व्यापकता और यह कि उसके अंदर वह सारी बातें मौजूद हैं, जिनमें मुसलमानों की भलाई और उनकी एकता निहित है।
  3. भले कामों को करने का शौक़ दिलाना, विशेष रूप से जो दूसरे लोगों से संबंधित हो तथा यह कि आदमी को किसी भी भले काम को छोटा नहीं जानना चाहिए।
  4. मुसलमानों को प्रसन्न होने का अवसर देने का मुसतहब होना, क्योंकि इससे उनके अंदर आपसी प्रेम परवान चढ़ता है।
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