عن عبد الله بن مسعود رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم:
«مَنْ قَرَأَ حَرْفًا مِنْ كِتَابِ اللهِ فَلَهُ بِهِ حَسَنَةٌ، وَالْحَسَنَةُ بِعَشْرِ أَمْثَالِهَا، لَا أَقُولُ {الم} حَرْفٌ، وَلَكِنْ {أَلِفٌ} حَرْفٌ، وَ{لَامٌ} حَرْفٌ، وَ{مِيمٌ} حَرْفٌ».
[حسن] - [رواه الترمذي] - [سنن الترمذي: 2910]
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अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"जो अल्लाह की किताब का कोई एक अक्षर पढ़ेगा, उसे एक नेकी मिलेगी और नेकी दस गुणा तक दी जाती है। मैं यह नहीं कहता कि अलिफ़ लाम मीम मिल कर एक अक्षर है, बल्कि अलिफ़ एक अक्षर, लाम एक अक्षर और मीम एक अलग अक्षर है।"
[ह़सन] - [इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है।] - [سنن الترمذي - 2910]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि जब कोई मुसलमान अल्लाह की किताब का एक अक्षर पढ़ता है, तो उसके बदले में उसे एक नेकी मिलती है और उसके इस प्रतिफल को दस गुना तक बढ़ाया जाता है।
फिर इस बात को स्पष्ट करते हुए फ़रमाया : "मैं यह नहीं कहता कि अलिफ़ लाम मीम मिल कर एक अक्षर है, बल्कि अलिफ़ एक अक्षर, लाम एक अक्षर और मीम एक अलग अक्षर है।" इस तरह तीन अक्षरों की नेकियाँ तीस बनती हैं।