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عَنْ جَرِيرٍ رضي الله عنه عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:
«مَنْ يُحْرَمِ الرِّفْقَ يُحْرَمِ الْخَيْرَ».

[صحيح] - [رواه مسلم] - [صحيح مسلم: 2592]
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जरीर रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"जिसे नर्मी से वंचित कर दिया गया, उसे सारी भलाई से वंचित कर दिया गया।"

[सह़ीह़] - [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 2592]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि जिसे नर्मी से वंचित कर दिया गया, दीन एवं दुनिया से संबंधित मामलात और दूसरों के साथ मामलात में नर्मी उसके व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं रही, उसे पूरे तौर पर भलाई से वंचित कर दिया गया।

हदीस का संदेश

  1. नर्मी की फ़ज़ीलत, उससे सुशोभित होने की प्रेरणा और सख़्ती की निंदा।
  2. नर्मी से दोनों जहानों के मामले अच्छे से चलते हैं और दोनों जगहों में कुशादगी पैदा होती है। जबकि सख़्ती का मामला इसके विपरीत है।
  3. नर्मी अच्छे आचरण और अच्छे व्यवहार का प्रतिबिंब है, जबकि कठोरता क्रोध और कड़वाहट का प्रतिबिंब है। यही कारण है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नर्मी की प्रशंसा की है और उसका महत्व बताया है।
  4. सुफ़यान सौरी ने अपने साथियों से पूछा : क्या तुम जानते हो कि नर्मी क्या है? नर्मी यह है कि तुम हर चीज़ को उसकी असल जगह पर रखो। सख़्ती को उसकी जगह पर, नर्मी को उसकी जगह पर, तलवार की उसकी जगह पर और कोड़े को उसकी जगह पर।
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