عَنْ عَبْدِ اللهِ بْنِ بُسْرٍ رضي الله عنه أَنَّ رَجُلاً قَالَ: يَا رَسُولَ اللهِ إِنَّ شَرَائِعَ الإِسْلاَمِ قَدْ كَثُرَتْ عَلَيَّ، فَأَخْبِرْنِي بِشَيْءٍ أَتَشَبَّثُ بِهِ، قَالَ:
«لاَ يَزَالُ لِسَانُكَ رَطْبًا مِنْ ذِكْرِ اللَّهِ».
[صحيح] - [رواه الترمذي وابن ماجه وأحمد] - [سنن الترمذي: 3375]
المزيــد ...
अब्दुल्लाह बिन बुस्र रज़ियल्लाहु अनहुमा फ़रमाते हैं कि एक व्यक्ति ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! इस्लाम के प्रावधान (आदेश एवं निर्देश ) मेरे लिए बहुत ज़्यादा हो गए हैं। अतः मुझे कोई ऐसी चीज़ बताएँ, जिसे मैं मज़बूती से पकड़ लूँ। आपने फ़रमाया :
"तुम्हारी ज़बान हमेशा अल्लाह के ज़िक्र से तर रहे।"
[सह़ीह़] - [رواه الترمذي وابن ماجه وأحمد] - [سنن الترمذي - 3375]
एक व्यक्ति ने अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सामने शिकाय की कि उसके समाने नफ़ल इबादतें इतनी ज़्यादा मौजूद हैं कि अपनी दुर्बलता के कारण वह उन्हें कर नहीं सकता। फिर अनुरोध किया कि आप उसे कोई छोटा-सा अमल बता दें, जिससे बहुत सारे सवाब प्राप्त हो जाएँ और जिसे वह मज़बूती से पकड़े रहे।
अतः अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे निर्देश दिया कि हमेशा उसकी ज़बान अल्लाह के ज़िक्र से तर रहे और हर समय तथा हर परिस्थिति में अल्लाह के ज़िक्र, जैसे सुबहानल्लाह, अल-हम्दु लिल्लाह, अस्तग़फ़िरुल्लाह और दुआ आदि में व्यस्त रहे।