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عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ عَبْدِ الرَّحْمَنِ بْنِ صَخْرٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: سَمِعْت رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّم يَقُولُ:
«مَا نَهَيْتُكُمْ عَنْهُ فَاجْتَنِبُوهُ، وَمَا أَمَرْتُكُمْ بِهِ فَافْعَلُوا مِنْهُ مَا اسْتَطَعْتُمْ، فَإِنَّمَا أَهْلَكَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ كَثْرَةُ مَسَائِلِهِمْ، وَاخْتِلَافُهُمْ عَلَى أَنْبِيَائِهِمْ».

[صحيح] - [رواه البخاري ومسلم] - [الأربعون النووية: 9]
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अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अनहु- कहते हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को कहते हुए सुना है :
“मैं तुम्हें जिस चीज़ से रोकूँ, उससे बचो और जिस चीज़ का आदेश दूँ, उसे जहाँ तक हो सके करो, क्योंकि तुमसे पहले के लोगों को उनके अधिक प्रश्न पूछने की प्रवृत्ति और नबियों से असहमति ने हलाक किया है।”

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व्याख्या

अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने हमें बताया है कि जब आप हमें किसी चीज़ से मना करें, तो हमें बिना किसी अपवाद के उससे बचना होगा और जब किसी चीज़ का आदेश दें, तो उसे यथासंभव करना होगा। फिर आपने हमें सचेत किया कि हम पिछली कुछ उम्मतों की तरह न बन जाएँ, जिन्होंने अपने नबियों से बहुत अधिक प्रश्न पूछे और उनके आदेशों का उल्लंघन किया, तो अल्लाह ने उन्हें विभिन्न प्रकार की तबाही और विनाश से दंडित किया। अगर हम उनकी तरह हुए तो हमें भी उनकी तरह हलाकत एवं विनाश का सामना करना पड़ेगा।

हदीस का संदेश

  1. यह हदीस आदेशों का पालन करने एवं निषिद्ध चीज़ों से बचने के कर्तव्य को स्पष्ट करने के विषय में एक सिद्धांत की हैसियत रखती है।
  2. यहाँ मना किए हुए कार्यों में से किसी भी कार्य को करने की अनुमति नहीं दी गई है, जबकि आदेशों का पालन करने के साथ सामर्थ्य होने की बात कही गई है। ऐसा इसलिए कि छोड़ना इन्सान के वश में होता है, जबकि करने के लिए आदेशित कार्य को करने का सामर्थ्य होने की ज़रूरत होती है।
  3. मना किए हुए कार्य के दायरे में कम और ज़्यादा दोनों आते हैं। क्योंकि दोनों से बचे बिना बचना नहीं कहलाएगा। मसलन आपने सूद से मना किया, तो उसमें सूद की कम तथा ज़्यादा दोनों मात्रा शामिल होगी।
  4. हराम की ओर ले जाने वाली चीज़ों से बचना भी ज़रूरी है। क्योंकि बचने के अर्थ में यह भी शामिल है।
  5. जब कोई व्यक्ति अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का आदेश सुने, तो फ़ौरन उसका पालन करे। यह न पूछे कि आदेशित कार्य वाजबि है या मुसतहब? क्योंकि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के शब्द हैं : "उसे जहाँ तक हो सके, करो।"
  6. अधिक प्रश्न करना विनाश का कारण बनता है, विशेषकर ऐसी बातों के बारे में जिनका जान पाना संभव न हो, जैसे परोक्ष से संबंधित बातें और क़यामत के दिन के हालात। इनके बारे में अधिक सवाल न करो, वरना विनष्ट हो जाओगे और तुम्हारा शुमार अतिशयोक्ति करने वालों में होगा।
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